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________________ 378...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में में है। विकृति से विकार उत्पन्न होता है। विकार भाव से मोहनीय कर्म की उदीरणा होती है। मोह की उदीर्णावस्था में चित्त अकार्य में प्रवृत्त हो जाता है और उससे दुर्गति का भागी बनता है। इसलिए विगय सेवन का निषेध है। सामान्य विगय छः हैं- 1. दूध 2. दही 3. घी 4. तेल 5. गुड़-शक्कर 6. कढ़ाई खाद्य- तलने पर फूलकर ऊपर आने वाली वस्तुएँ पूड़ी, खाजा आदि। महाविगय चार हैं- 1. मांस 2. मक्खन 3. मदिरा 4. शहद। महाविगय कठिन स्थिति में भी त्याज्य है, किन्तु सामान्य विगय परिस्थिति विशेष में ग्राह्य होती है।107 इन विगय द्रव्यों से निर्मित या संस्कारित पदार्थ निवियाता कहलाते हैं। सामान्य कारणों या देह असामर्थ्य आदि प्रसंगों में निवियाता का उपयोग करना चाहिए। आगम शास्त्रों के अध्ययनार्थ योगोद्वहन (तप अनुष्ठान) करते समय किसी मुनि का शरीर कृश हो जाए, मन दुर्बल हो जाए और स्वाध्याय आदि करने में समर्थता न रहें तो ऐसी स्थिति में निवियाता का उपयोग करना चाहिए। कहा भी गया है कि अनिवार्य स्थितियों में ही निवियाता का उपयोग करना चाहिए, सामान्य कारणों में नहीं। जिन्होंने इन्द्रिय निग्रह के लिए विगय का त्याग किया है उन्हें निवियाता ग्रहण करना नहीं कल्पता है। कुछ लोग विगय का त्याग करके स्निग्ध, मधुर एवं उत्कृष्ट द्रव्य रूप लड्डु, मालपूआ, खीर आदि का निष्कारण सेवन करते हैं, यह सर्वथा अनुचित है। अतएव दुर्गति से बचाव करने के लिए विकृति कारक 6 + 4 द्रव्यों का उपयोग नहीं करना चाहिए। यदि देहक्षीणता आदि कठिन स्थितियाँ उत्पन्न हो जाए तो ही निवियाता का आसेवन करना चाहिए। प्रवचनसारोद्धार आदि में प्रतिपादित निवियाता का संक्षिप्त स्वरूप निम्नांकित है-108 दूध सम्बन्धी- दूध द्वारा निष्पन्न पंचविध निर्विकृतिक पदार्थ ये हैं1. पेया- अल्पमात्रा में तन्दुल डालकर उबाला हुआ दूध, जैसे दूध की काञ्जी। 2. दुग्घाटी- कांजी आदि खट्टे पदार्थ के साथ उबाला हुआ दूध, जैसे पनीर आदि। कुछ आचार्यों के अनुसार गाय, भैंस आदि की नई प्रसूति होने के पश्चात निकला हुआ गाढ़ा दूध, दुग्घाटी है इसे बहलिका कहते हैं। 3. अवहेलिका- चावल के आटे के साथ उबाला हुआ दूध। 4. दुग्धसाटिकाद्राक्ष डालकर उबाला हुआ दूध। 5. खीर- अधिक मात्रा में चावल डालकर उबाला हुआ दूध।109
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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