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________________ 350... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में शब्द सुनकर पौरुषी प्रत्याख्यान पूर्ण हुआ, ऐसा भ्रम नहीं करना चाहिए किन्तु सही जानकारी के अभाव में वैसा भ्रम उत्पन्न हो जाता है। उपरोक्त प्रच्छन्नकाल, दिशामोह और साधुवचन-तीनों आगारों का अभिप्राय यह है कि भ्रान्ति के कारण पौरुषी प्रत्याख्यान का काल पूर्ण न होने पर भी उसे पूर्ण समझकर समय से पहले भोजन कर लिए जाए तो व्रत भंग नहीं होता है। यदि भोजन करते समय यह मालूम हो जाए कि अभी पौरुषी पूर्ण नहीं हुई है तो उसी समय भोजन करना छोड़ देना चाहिए। 6. सर्वसमाधि प्रत्ययाकार - सर्व - पूर्ण, समाधि - शाता, प्रत्यय-निमित्त आकार-छूट। अचानक किसी शूल आदि तीव्र रोग के कारण शरीर विह्वल हो जाए एवं प्रत्याख्यानी के परिणामों में आर्त्त - रौद्र ध्यान की संभावना हो तो उसकी चित्त समाधि के लिए प्रत्याख्यान का काल पूर्ण होने से पहले औषध आदि दे देना, सर्वसमाधिप्रत्ययाकार आगार है। 7. महत्तराकार- यह शब्द महत्तर + आकार इन दो शब्दों से निर्मित है। महत्तर शब्द का अर्थ दो प्रकार से किया गया है - 1. महत्तर अर्थात अपेक्षाकृत महान् पुरुष आचार्य, उपाध्याय आदि गच्छ या संघ के प्रमुख 2. अपेक्षाकृत महान निर्जरा वाला कोई प्रयोजन या कार्य। स्पष्टार्थ है कि प्रत्याख्यान से जितनी कर्म निर्जरा होती है उससे अधिक कर्म-निर्जरा का कारण उपस्थित होने पर या कोई महत्त्वपूर्ण कार्य आ जाने पर, जैसे कोई साधु बीमार पड़ गया हो या जिन मन्दिर या संघ पर कोई आपत्ति आ पड़ी हो और उसका निवारण उसी व्यक्ति को करना पड़े, जिसने पुरिमड्ढ आदि का प्रत्याख्यान किया हो, तो ऐसे कार्य को करने के लिए निश्चित समय से पहले ही प्रत्याख्यान पूर्ण कर लेना महत्तराकार आगार है। 8. सागारिकाकार- सागारिक गृहस्थ, आकार छूट। साधु को गृहस्थ के समक्ष भोजन करने का निषेध है, किन्तु भोजन करते समय कोई गृहस्थ अचानक आ जाए तो साधु को भोजन बन्द कर देना चाहिए और ऐसा लगे कि गृहस्थ देर तक रुकने वाला है तो बीच में ही उठकर दूसरी जगह एकान्त में जाकर भोजन करना, सागारिकाकार आगार है। जैन मुनि यथाशक्ति एकासन आदि व्रत का पालन करते हैं अत: उनके लिए एकासन आदि करते हुए बीच में उठ जाने पर भी प्रत्याख्यान भग्न नहीं -
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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