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________________ प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ... 345 परिपाटी सामान्य रूप से प्रवर्तित है, किन्तु उसके लिए प्रतिज्ञा पाठ से आबद्ध होना आवश्यक नहीं माना गया है। गीता में प्रत्याख्यान से सन्दर्भित त्याग के तीन प्रकार बतलाए गए हैं- 1. सात्विक 2. राजसिक और 3. तामसिक। 1. तामस - नियत कर्म का त्याग करना योग्य नहीं है, इसलिए मोह से उसका त्याग करना, तामस त्याग है । 2. राजसिक-सभी कर्म दुःख रूप है ऐसा समझकर शारीरिक क्लेश के भय से कर्मों का त्याग करना, राजस त्याग है। 3. सात्त्विक - शास्त्रविधि से नियत किया हुआ कर्त्तव्य-कर्म करते हुए उसमें आसक्ति और फल का त्याग कर देना सात्त्विक त्याग है। 62 प्रत्याख्यान के आगार सम्बन्धी तालिका किस प्रत्याख्यान में कितने आगार (अपवाद) होते हैं ? सुगम बोध के लिए वह चार्ट निम्नानुसार है— प्रत्याख्यान 1. नवकारसी 2. मुट्ठीसहित नवकारसी 3. पौरुषी - साढपौरुषी 4. पुरिमड्ड-अवड्ड 5. एकाशन - बियासन 6. एकलठाणा संख्या आगार नाम 2 अनाभोग, सहसाकार । 4 अनाभोग, सहसाकार, महत्तराकार, सर्वसमाधिप्रत्ययाकार | 6 7 8 7 अनाभोग, सहसाकार, प्रच्छन्नकाल, दिशामोह, साधुवचन, सर्वसमाधिप्रत्य याकार। छः आगार पोरसी के समान और सातवाँ महत्तराकार | अनाभोग, सहसाकार, सागारिकागार, आकुंचन-प्रसारण, गुर्वभ्युत्थान, पारिष्ठा-पनिकाकार, महत्तराकार, सर्वसमाधि प्रत्ययाकार। आकुंचन प्रसारण के सिवाय शेष एकाशन के समान।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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