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344...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
विशेषार्थ- दस प्रकार के अद्धा प्रत्याख्यानों को पूर्ण करने का यह संयुक्त पाठ है, इसलिए जिस प्रत्याख्यान को पूर्ण करना हो, उस तप का नामोच्चारण करना चाहिए। जैसे- एकासन का प्रत्याख्यान पूर्ण करना हो तो ‘एकासणुं कर्यु तिविहार'- इस प्रकार सभी तरह के प्रत्याख्यान पूर्ण करना चाहिए।
प्रत्याख्यान पारणे का सूत्र बोलने के बाद भोजन न करने तक का समय अविरित में न जाए, अत: 'मुट्ठिसहियं' आदि सांकेतिक प्रत्याख्यान अवश्य करना चाहिए।
तिविहार उपवास के प्रत्याख्यान को पूर्ण करने का सूत्र निम्न है- सूरे उग्गए पच्चक्खाणं कयं (कर्यु) तिविहार, पोरिसिं साड्डपोरिसिं पुरिमड्ड अवड्ड मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाणं कयं (कर्यु) पाणहार पच्चक्खाण फासिअं पालिअं सोहिअं तिरिअं किट्टि आराहियं जं च न आराहियं तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
अर्थ- सूर्य उदय होने के बाद तीन प्रकार के आहार का प्रत्याख्यान किया और पौरुषी, साढपौरुषी, पुरिमड्ड, अवड्ड या मुट्ठिसहियं का प्रत्याख्यान पानी का त्याग करने के उद्देश्य से किया तथा इस प्रत्याख्यान की आराधना 1. फासित 2. पालित 3. शोधित 4. तीरित 5. कीर्तित और 6. आराधित- इन छ: प्रकार की शुद्धिपूर्वक न की हो, तो तद्विषयक मेरा पाप (दुष्कृत) मिथ्या हो।61
विशेषार्थ- ‘सूरे उग्गए पच्चक्खाण कर्यु तिविहार'- इस पाठ के स्थान पर कुछ जन निम्न पाठ बोलते हैं
'सूरे उग्गए उपवास कर्यु तिविहार'- यह पाठ बोलते हैं अथवा सूरे उग्गए अब्भत्तट्ठ पच्चक्खाण कर्यु तिविहार'- इस तरह भी बोलते हैं।
तुलना- जैन धर्म की श्वेताम्बर मूलक सभी परम्पराओं में प्रत्याख्यान पाठ प्रायः समान हैं। जैनागमों में एक मात्र आवश्यकसूत्र में ये पाठ उपलब्ध होते हैं तथा जैन व्याख्या साहित्य में तद्विषयक विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है।
नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु, टीकाकार आचार्य हरिभद्र, भाष्यकार जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण, चूर्णिकार जिनदासगणी आदि ने इस सम्बन्ध में विशिष्ट व्याख्याएँ प्रस्तुत की है।
वैदिक एवं बौद्ध साहित्य में प्रत्याख्यान पाठ या प्रतिज्ञा पाठ सम्बन्धी कुछ भी वर्णन पढ़ने को नहीं मिला है। यद्यपि इन परम्पराओं में व्रतोपासना की