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334... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
नवकारसी आदि दसविध अद्धा प्रत्याख्यान प्रतिदिन ग्रहण किये जाते हैं। इन प्रत्याख्यानों के प्रतिज्ञा पाठ निम्न प्रकार हैं
प्रातः कालीन प्रत्याख्यान
नवकारसी प्रतिज्ञासूत्र
उग्गए सूरे नमोक्कार सहियं पच्चक्खामि चउव्विहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं वोसिरामि।
अर्थ- सूर्य उदय होने के पश्चात दो घड़ी (48 मिनट) तक नमस्कारसहित प्रत्याख्यान करता हूँ और अशन, पान, खादिम एवं स्वादिमइन चारों ही प्रकार के आहार का त्याग अनाभोग और सहसाकारदो आगार रखकर करता हूँ। 42
विशेषार्थ - सूर्योदय से लेकर दो घड़ी (48 मिनट) पर्यन्त चतुर्विध आहार का त्याग करना तथा समय पूर्ण होने के पश्चात तीन नमस्कार मन्त्र का स्मरण कर उचित भोजन ग्रहण करना, नवकारसी कहलाता है। बोलचाल की भाषा में इसे 'नोकारसी' कहते हैं। यह प्रत्याख्यान यथासमय पूर्ण करना चाहिए। यदि कारणवश वैसा शक्य न हो, तो व्रत में अव्यवस्था हो सकती है, इसलिए नवकारसी के साथ ‘मुट्ठिसहियं' का प्रत्याख्यान भी करवाया जाता है और उस प्रतिज्ञापाठ में अनाभोग एवं सहसाकार- इन दो आगारों के उपरांत महत्तराकार और सर्वसमाधिप्रत्ययाकार - आगार की भी छूट रखी जाती है। कदाच प्रत्याख्यान निर्धारित समय से पहले पूर्ण करना पड़े या रोगादिवश तीव्र अशान्ति उत्पन्न हो जाए तो उसे शान्त करने के लिए समय से पूर्व औषध आदि का सेवन करने पर प्रत्याख्यान भग्न नहीं होता है।
मुट्ठिसहियं पूर्वक नवकारसी का प्रतिज्ञापाठ निम्न हैं
उग्गए सूरे नमुक्कार-सहिअं मुट्ठि-सहिअं पच्चक्खामि चउव्विहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि।
• साधु या साध्वी को यह प्रत्याख्यान विगई और पानी के आगार छोड़कर लेना चाहिए। • उष्ण जल पीने वाले गृहस्थ को भी विगई एवं पानी के आगार छोड़कर यह प्रत्याख्यान ग्रहण करना चाहिए ।