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प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ... 329
इन दो प्रकार की वस्तुओं को ग्रहण करने में भी मुख्य उपयोग रखा जाता है, उसे आगम भाषा में आयंबिल कहते हैं | 29 आचार्य हरिभद्रकृत संबोधप्रकरण में आयंबिल के पर्यायवाचक शब्द भी कहे गये हैं- अंबिल, नीरस जल, दुष्प्राय, धातु शोषण, कामघ्न, मंगल, शीत आदि आयंबिल के एकार्थी शब्द हैं। 30
प्रचलित परिभाषा के अनुसार दिन में एक बार केवल उबला हुआ धान्य एवं जल इन दो द्रव्यों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं खाना, आयंबिल प्रत्याख्यान है।
7. अभक्तार्थ (उपवास) - भक्त भोजन का अर्थ-प्रयोजन, अ- नहीं है अर्थात जिसमें भोजन करने का प्रयोजन नहीं होता वह अभक्तार्थ प्रत्याख्यान कहलाता है।
अभक्त का प्रचलित पर्याय नाम उपवास है। आचार्य हरिभद्रसूरि ने सम्बोधप्रकरण में उपवास के एकार्थक शब्द भी बतलाये हैं जैसे - मुक्त, श्रमण, धर्म, निष्पाप, उत्तम, अणाहार, चतुष्पाद और अभक्त।31 उपवास दो प्रकार का होता है
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प्रथम प्रकार में अशन, खादिम और स्वादिम- तीन प्रकार के आहार का त्याग किया जाता है उसे तिविहार उपवास कहते हैं। दूसरे प्रकार में चारों प्रकार के आहार का त्याग किया जाता है उसे चौविहार उपवास कहते हैं।
आगम साहित्य में उपवास के लिए 'चउत्थभत्त' शब्द प्रयुक्त हुआ है। 8. चरिम - दिन के अन्त में या भव के अन्त में किया जाने वाला प्रत्याख्यान क्रमशः दिवसचरिम और भवचरिम - प्रत्याख्यान कहलाता है। दिवसचरिम प्रत्याख्यान दुविहार, तिविहार, चौविहार, पाणहार आदि अनेक प्रकार का होता है। सूर्य अस्त होने से पहले ही दूसरे दिन सूर्योदय तक के लिए चारों अथवा तीनों आहारों का त्याग करना, दिवसचरिम प्रत्याख्यान है।
भवचरिम प्रत्याख्यान सागार और अणागार दो प्रकार का होता है। अनाभोग से या सहसा अंगुली, तृण आदि की मुँह में जाने की सम्भावना होने से इस प्रत्याख्यान में अन्नत्थणाभोग एवं सहसागार - ये दो आगार रखे जाते हैं और उसे सागार भवचरिम प्रत्याख्यान कहते हैं। जिसमें पूर्ण सावधानी बरती जाए, उसमें आगार (छूट) की आवश्यकता नहीं रहती है वह अनागार भवचरिम प्रत्याख्यान कहलाता है ।