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328... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
अद्धा प्रत्याख्यान
समय विशेष की निश्चित मर्यादापूर्वक ग्रहण किया जाने वाला प्रत्याख्यान अद्धा कहलाता है। अद्धा शब्द कालवाची है अतः इसे कालिक प्रत्याख्यान भी कहते हैं। यह प्रत्याख्यान निम्न दस प्रकार से किया जाता है
1. नमस्कारसहित (नवकारसी) 2. पौरूषी 3. पुरिमार्ध-अपार्ध 4. एकासन 5. एकस्थान (एकलठाणा) 6. आचाम्ल (आयंबिल) 7. अभक्तार्थ (उपवास) 8. चरिम प्रत्याख्यान 9. अभिग्रह और 10 निर्विकृति | 28
1. नवकारसी - सूर्योदय से लेकर 48 मिनट ( दो घड़ी) के पश्चात तीन नमस्कारमंत्र का स्मरण करके भोजन - पानी ग्रहण करना, नवकारसी प्रत्याख्यान है।
2. पौरूषी - प्रात: काल पुरुष की छाया स्वयं के देह परिमाण जितनी आ जाए उतने समय तक खाद्य-पेय पदार्थों का उपयोग नहीं करना अथवा सूर्योदय से एक प्रहर तक चारों आहार का त्याग करना, पौरूषी प्रत्याख्यान है। 3. पुरिमार्ध (पुरिमड्ड ) - दिन के पूर्व का आधा भाग अर्थात प्रारम्भिक दो प्रहर तक अशन आदि चारों आहार का त्याग करना, पुरिमार्ध प्रत्याख्यान है। अपार्ध (अवड्ड) - दिन के अन्तिम भाग का आधा भाग अर्थात दिन के तीन प्रहर तक अशन आदि चारों आहार का त्याग कर देना, अपार्थ प्रत्याख्यान है। 4. एकाशन - एक अशन दिन में एक बार भोजन करना एकाशन कहलाता है अथवा एक + आसन = एक निश्चल आसन से भोजन करना एकासन प्रत्याख्यान है। एगासण में दोनों ही अर्थ ग्राह्य है।
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5. एकस्थान - एक ही आसन में एक बार से अधिक भोजन नहीं करना एकस्थान प्रत्याख्यान है अथवा भोजन करते समय जिस स्थिति में बैठे हों अन्त तक मुख और हाथ के सिवाय किसी अंग का संकोच - विस्तार नहीं करते हुए उसी स्थिति में बैठे रहना, एकस्थान प्रत्याख्यान है।
एकाशन और एकस्थान में मुख्य अन्तर यह है कि एकाशन में एक बार भोजन करने के पश्चात सूर्यास्त से पूर्व तक पानी ग्रहण कर सकते हैं, जबकि एकलठाणा प्रत्याख्यान में अन्न-जल एक ही बार ग्रहण किया जाता है इसे 'ठाम चौविहार' भी कहते हैं।
6. आयंबिल - आयाम अर्थात ओसामण ( धोवण) और अम्ल अर्थात सौवीरक-कांजी या खट्टा पानी, चावल, उड़द और निर्जीव (अचित्त) भोजन -