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प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...321
श्रुत प्रत्याख्यान दो प्रकार का निर्दिष्ट है- 1. पूर्वश्रुत- नवाँ प्रत्याख्यान पूर्व 2. नोपूर्वश्रुत- आवश्यकसूत्र का छटवाँ प्रत्याख्यान अध्ययन, आतुर प्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान आदि। नोश्रुत प्रत्याख्यान दो प्रकार का कहा गया है
1. मूलगुण प्रत्याख्यान और 2. उत्तरगुण प्रत्याख्यान।17 नैतिक जीवन के विकास हेतु मुख्य व्रतों का ग्रहण करना, मूल गुण प्रत्याख्यान है। मूल गुण प्रत्याख्यान के भी दो भेद हैं- (i) सर्वमूलगुण प्रत्याख्यान- मुनि जीवन के पाँच महाव्रतों की प्रतिज्ञा करना, सर्वमूलगुण प्रत्याख्यान है। यह प्रत्याख्यान यावज्जीवन के लिए ग्रहण किया जाता है। (ii) देशमूलगुण प्रत्याख्यान- गृहस्थ जीवन के पाँच अणुव्रतों की प्रतिज्ञा करना, देशमूलगुण प्रत्याख्यान है। यह प्रत्याख्यान नियत कालिक एवं यावज्जीवन दोनों तरह से ग्रहण किया जाता है नैतिक जीवन के विकास हेतु सहायक व्रतों का ग्रहण करना, उत्तरगुण प्रत्याख्यान है। यह प्रत्याख्यान कुछ दिनों के लिए अथवा प्रतिदिन ग्रहण किया जाता है।
उत्तरगुण प्रत्याख्यान के भी दो भेद हैं
(i) सर्व उत्तरगुण प्रत्याख्यान-अनागत, अतिक्रान्त आदि दस प्रकार का प्रत्याख्यान करना, सर्व उत्तरगुण प्रत्याख्यान है। इस कोटि का प्रत्याख्यान 'दस प्रत्याख्यान' के नाम से भी प्रसिद्ध है। उक्त दस प्रत्याख्यानों में सांकेतिक और अद्धा प्रत्याख्यान विशेष प्रचलित हैं, क्योंकि इन दो प्रत्याख्यानों की योजना भव्य जीवों के न्यूनाधिक सामर्थ्य की अपेक्षा की गई है। किसी जीव का सामर्थ्य न हो या कठिन प्रत्याख्यान न कर सकें तो वह सर्वप्रथम अंगुठ-सहियं, मुट्ठिसहियं आदि सांकेतिक प्रत्याख्यान प्रारम्भ करें। सामान्य प्रत्याख्यान करते हुए अभ्यस्त हो जाए, तब नमुक्कारसी, पौरुषी, साढपौरुषी, पुरिमड्ढ और अवड्ढ प्रत्याख्यान ग्रहण करें। इन प्रत्याख्यानों का सम्यक् अभ्यास हो जाए, तदुपरान्त एकासन, एकलठाणा और आयंबिल के प्रत्याख्यान का अभ्यास करें। फिर यथाशक्ति विकृत पदार्थों के सेवन करने का त्याग करें। तत्पश्चात उपवास, बेला, तेला आदि कठिन तपस्या सरलता पूर्वक की जा सकती है। यह प्रत्याख्यान श्रमण और गृहस्थ दोनों के लिए कहा गया है।