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________________ 292...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में मिथ्यात्व आदि तीनों शल्य मोक्षमार्ग में परम विघ्नकारक हैं अत: प्रत्येक साधक को इसका जड़ मूल से विनाश कर देना चाहिए। इस सम्बन्ध में किया गया सम्यक् प्रयत्न ही विशल्यीकरण है। जो साधक शल्य मुक्त हो जाता है वह घनीभूत पापकर्मों का निर्घात कर सकता है तथा प्रशस्त ध्यान में प्रवृत्त होकर मोक्ष के निकट पहुँच सकता है। इस प्रकार मलिन आत्मा की विशिष्ट शुद्धि कायोत्सर्ग द्वारा ही की जा सकती है। कायोत्सर्ग के अभ्यास द्वारा प्रायश्चित्तकरण, विशोधिकरण एवं विशल्लीकरण भी सम्भव है। कायोत्सर्ग के शास्त्रीय प्रयोजन ___ कायोत्सर्ग आत्मशुद्धि का अमोघ उपाय है। इस क्रिया का मूल उद्देश्य शारीरिक ममत्त्व का विसर्जन एवं आत्मिक अध्यवसायों का विशुद्धिकरण करना है। जिनमत में सामान्यतया निम्न हेतुओं से कायोत्सर्ग किया जाता है__ 1. मार्ग में चलने-फिरने आदि से जो विराधना होती है, उससे लगने वाले अतिचार से निवृत्त होने के लिए, उस पाप कर्म को नीरस करने के लिए ईर्यापथिकसूत्र द्वारा कायोत्सर्ग करते हैं। 2. उत्तरीकरणेणं- संसारी आत्मा पाप कर्मों से मलिन है, उस आत्मा की विशेष शुद्धि के लिए, अधिक निर्मल बनाने के लिए, उसे सम्यक् संस्कारों से अधिवासित कर उत्तरोत्तर उन्नत बनाने के लिए । 3. पायच्छित्तकरणेणं- प्रायश्चित्त करने के लिए, पापों का छेद-विच्छेद करने के लिए, आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए। 4. विसोहिकरणेणं- विशोधिकरण के लिए, आत्मा के परिणामों की विशेष शुद्धि करने के लिए, आत्मा के अशुभ एवं अशुद्ध अध्यवसायों के निवारण के लिए। 5. विसल्लीकरणेणं- आत्मा को माया शल्य, निदान शल्य एवं मिथ्यात्व __ शल्य से रहित बनाने के लिए तस्सउत्तरीसूत्र द्वारा कायोत्सर्ग करते हैं। 6. तीर्थंकर प्रभु एवं श्रुतधर्म के वन्दन, पूजन, सत्कार, सम्मान के निमित्त, बोधिलाभ एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए बढ़ती हुई 1. श्रद्धा से 2. बुद्धि से 3. धृति से अर्थात विशेष प्रीति से 4. धारणा से अर्थात सम्यक् स्मृति से 5. अनुप्रेक्षा से अर्थात सत्चिन्तन से अरिहंतचेईयाणंसूत्र द्वारा कायोत्सर्ग
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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