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________________ कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान ...285 2. सम्मा सति- सम्यक सावधानी या जागरूकता रखना, होश में रहना। जागरूक रहकर वर्तमान की सच्चाई को जानना। भूत और भविष्य की कल्पना से परे रहना, वास्तविकता के प्रति सजग रहना- यह सम्यक स्मृति है। ___3. सम्मा समाधि- राग-द्वेष से रहित चित्त को एकाग्र रखना सम्यक समाधि है। पूर्वोक्त समाधि के तीन अंग विपश्यना के प्रमुख आधार हैं। जैसे- प्रथम सम्यक व्यायाम के द्वारा बड़ी-बड़ी बुराईयों को देखा जाता है अर्थात स्थूल रूप में नाक से आते-जाते हुए श्वास को देखा जाता है। फिर सम्यक स्मृति (जागरूकता) के द्वारा 'श्वास स्पर्श कर रहा है' ऐसा सूक्ष्म श्वास को जानने एवं निरीक्षण करने का अभ्यास किया जाता है। इसके बाद नाक के त्रिकोण पर ध्यान केन्द्रित कर वहाँ क्या हो रहा है,जाना जाता है। इससे श्वास के स्पर्श की कुछ न कुछ प्रतिक्रिया हो रही है, इस सच्चाई से परिचित होते हैं। धीरे-धीरे अन्य सच्चाईयाँ प्रकट होने लगती हैं। ज्यों-ज्यों मन सूक्ष्म होने लगता है त्यों-त्यों शरीरगत जैविक, रासायनिक, विद्युत चुम्बकीय प्रतिक्रियाओं का अनुभव होने लगता है। इसके द्वारा हम अनुभूतियों के स्तर पर ज्ञात से अज्ञात क्षेत्र को जानने लगते हैं। तत्पश्चात चित्त की समाधि होती है। यहाँ सम्यक् व्यायाम कायोत्सर्ग का प्रथम चरण है, सम्यक् स्मृति कायोत्सर्ग का विकसित चरण है और सम्यक् समाधि कायोत्सर्ग का अन्तिम चरण है अथवा ध्यान का अवतरण है। प्रज्ञा के अंतर्गत दो अंग निहित हैं__ 1. सम्मा दिट्टि- सम्यक दृष्टिवान् होना, परमार्थ सत्य को स्वीकार करना, सत्य की अनुभूति करना, सम्यक् दर्शन है। 2. सम्मा संकप्पो- मैत्री, करुणा, दया आदि शुभ विचारों का संकल्प करना, सम्यक् संकल्प है। विपश्यना पद्धति के सन्दर्भ में इतना कहना अपेक्षित है कि बौद्ध मार्गी समाधि-लौकिक समाधि है और प्रज्ञा की भावना-लोकोत्तर समाधि है। लौकिक समाधि के मार्ग को 'शमथयान' और लोकोत्तर समाधि के मार्ग को 'विपश्यना यान कहते हैं। कायोत्सर्ग-लौकिक समाधि रूप है और कायोत्सर्ग की पूर्णता अथवा ध्यान का प्रकटीकरण विपश्यना-यान के तुल्य है। साधक में शील, समाधि और प्रज्ञा- इन तीनों की पूर्णता होने पर निर्वाण उपलब्ध होता है।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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