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________________ कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान ...263 होना। कायोत्सर्ग अवस्था में दृष्टि को चेतन या अचेतन वस्तु पर स्थिर की जाती है, परन्तु सम्भव है कि इस समय कितनी ही बार दृष्टि अस्थिर हो जाती है।33 कारण कि मन की तरह दृष्टि को भी स्थिर करना दुष्कर है। कहा भी हैजिस प्रकार मन को स्थिर करना दुष्कर है उसी तरह चक्षु को स्थिर करना मुश्किल है। इसीलिए सत्त्वशाली आत्माओं ने इस क्रिया को अपवाद के रूप में स्वीकार किया है। तीर्थंकर जैसी आत्माएँ तो एक-एक रात्रि पर्यन्त अनिमेष दृष्टि से कायोत्सर्ग कर सकती हैं, परन्तु सामान्य प्राणियों के लिए तो किसी भी तरह सम्भव नहीं है। कायिक व्यापार निरोध के दुष्परिणाम ___आयुर्वेद शास्त्र का सामान्य अभिप्राय है कि 'वेगात् न धारयेत्' अर्थात वायु आदि से उत्पन्न होने वाले वेगों को नहीं रोकना चाहिए, क्योंकि उससे अनेक प्रकार के रोगोत्पत्ति की संभावना रहती है। जैसे • खांसी को रोकने से खांसी बढ़ती है तथा दमा, अरुचि, हृदय के रोग, क्षय और हेडकी का रोग होता है। • छींक रोकने से सिरदर्द होता है, इन्द्रियाँ निर्बल बनती है और वायु का रोग प्रकृति प्रदत्त हो जाता है। • जंम्भाई का निरोध करने से भी पूर्वोक्त रोग ही उत्पन्न होते हैं। • डकार रोकने से अरुचि, कंपन, हृदय और छाती में भयंकर पीड़ा, नाभि खिसकना, खांसी, हेडकी आदि रोग पैदा होते हैं। • अपान वायु को रोकने से गुल्म, उदावर्त, उदर शूल और ग्लानि होती है तथा वायु, मूत्र और मल बंध हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप आँखों की रोशनी और जठराग्नि का नाश होता है। इससे हृदय रोग होते हैं। अतएव किसी भी स्थिति में शरीर की स्वाभाविक क्रियाओं का अवरोध नहीं करना चाहिए।34 अन्य आगार- प्राचीन परम्परा के अनुसार कायोत्सर्ग साधना में उपस्थित होने से पूर्व अन्नत्थसूत्र (आगारसूत्र) बोला जाता है। इस सूत्र में उपर्युक्त 12 आगारों का स्पष्ट उल्लेख है, किन्तु उसमें आगत 'इत्यादि' शब्द से निम्नोक्त चार आगारों को भी ग्रहण करना चाहिए। 1. अग्नि फैलती हुई आकर शरीर को स्पर्श करने लगे तो नियत स्थान को छोड़कर दूसरे अनुकूल स्थान पर जा सकते हैं।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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