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262...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में कायोत्सर्ग करना आदि। जैसे शराब पकती है और बुड-बुड की आवाज होती है वैसी आवाज करना। ___लंबुत्तर, स्तन और संयती- ऐसे तीन दोष साध्वीजी को नहीं लगते, क्योंकि उन्हें अपने सभी अंग वस्त्र से ढ़ककर रखने चाहिए। श्राविकाओं के लिए उपर्युक्त तीन एवं वधू ऐसे चार दोष नहीं लगते, क्योंकि लज्जा स्त्री का भूषण होने से उन्हें मस्तक एवं दृष्टि नीची रखनी चाहिए। कायोत्सर्ग के आगार
आगार अर्थात आकार। यहाँ आगार का अर्थ प्रकार या अपवाद है। अपवाद का अर्थ है- विशेष प्रकार की छूट। सामान्यत: कायोत्सर्ग काल में समस्त दुष्चेष्टाओं का निरोध किया जाता है, फिर भी कायिक व्यापार का समग्र रूप से परित्याग कर देना शक्य नहीं है। कायिक व्यापार दो प्रकार का होता हैकुछ कायिक प्रवृत्तियाँ इच्छा के अधीन होती हैं जैसे- गमन करना, बैठना, शयन करना, भोजन करना आदि, इन व्यापारों पर नियन्त्रण किया जा सकता है किन्तु कुछ कायिक-प्रवृत्तियाँ नैसर्गिक होती हैं, उन पर नियन्त्रण करना असम्भव है।
यहाँ आगार का अभिप्राय- नैसर्गिक काय-व्यापार की छूट रखना है। नैसर्गिक कायिक प्रवृत्तियाँ बारह प्रकार की मानी गई हैं, जिनके होने पर कायोत्सर्ग भग्न नहीं होता है। उनके नाम ये हैं- 1. उच्छ्वास- श्वास लेना 2. नि:श्वास- श्वास निकालना 3. खांसी, 4. छींक 5. जंभाई- मुख से वायु का निर्गमन होना 6. डकार 7. अपान वायु का संचार होना अर्थात मलद्वार से वायु का निःसरण होना 8. चक्कर आना 9. पित्त के प्रकोप से मूर्छित होना 10. सूक्ष्म रूप से अंग संचालन होना अर्थात आँख की कीकी फरकना, हाथ-पैर के स्नायुओं का फरकना, शरीर के रोम फूलना आदि क्रियाएँ। ये प्रवृत्तियाँ इच्छा या प्रयत्न के अधीन न होकर शरीर में जब कभी होती रहती है। 11. सूक्ष्म रूप से शरीर में कफ एवं वायु का संचार होना। यह क्रिया शरीर में निरन्तर प्रवर्त्तमान रहती है। वायु द्वारा कफ को पृथक्-पृथक् स्थानों पर ले जाया जाता है। किसी समय इसका वेग इतना प्रबल हो जाता है कि व्यक्ति को स्वयं इसका बोध और अनुभव होता है कि शरीर के आभ्यन्तर भाग में कफ का हलन-चलन हो रहा है। यह भी एक जाति का सूक्ष्म काय-व्यापार है। 12. सूक्ष्म रूप से दृष्टि संचालन