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वन्दन आवश्यक का रहस्यात्मक अन्वेषण ...227 है। अर्हत वचन के अनुसार अहंकार नीच गोत्र का कारण है और नम्रता उच्च गोत्र का। जो नम्र है, ऋजुमना है, निष्कपट है, वही गुणीजनों के मूल्य की वास्तविक पहचान कर उनके अनुग्रह का अधिकारी बन सकता है और बहिरात्मा से परमात्मा की भूमिका को उपलब्ध कर सकता है। वन्दन आवश्यक की मूल्यवत्ता __ अर्हत शासन में विनम्र भावपूर्वक नमन करने को वन्दन कहा गया है। आरोग्य लाभ एवं आत्म उत्कर्ष की दृष्टि से वन्दन क्रिया की उपयोगिता सार्वकालिक सिद्ध होती है।
वन्दन आवश्यक का यथाविधि पालन करने से विनय की प्राप्ति होती है. अहंकार नष्ट होता है, सद्गुरुओं के प्रति अनन्य श्रद्धा व्यक्त होती है, तीर्थंकरों की आज्ञा का पालन होता है और श्रुतधर्म की आराधना होती है। श्रुतधर्म की सम्यक् आराधना आत्म शक्तियों का क्रमिक विकास करती हुई अन्ततोगत्वा मोक्ष का कारण बनती है।98
भगवतीसूत्र में कहा गया है कि सद्गुरु का सत्संग करने से शास्त्र श्रवण का लाभ होता है, शास्त्र श्रावण से ज्ञान होता है, ज्ञान से विज्ञान होता है। तत्पश्चात क्रमश:प्रत्याख्यान, संयम, अनाश्रव, तप, कर्मनाश, अक्रिया और सिद्धि लाभ होता है।99
भाव भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक किया गया विधि युक्त परमेष्ठी वंदन का अत्यन्त महत्त्व है। इस सन्दर्भ में जशकरणजी डागा द्वारा उद्घाटित कतिपय बिन्दु निश्चित रूप से उल्लेखनीय हैं।100 ____1. मुक्ति प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन- अध्यात्मयोगी देवचन्द्र जी ने कहा है
एक बार प्रभु वंदना रे, आगम रीते थाय ।
कारण सत्ते कार्यनी रे, सिद्धि प्रतीत कराय ।। अर्थात एक बार आगम विधि के अनुसार की गई प्रभु (परमेष्ठी) वंदना सत्य (मोक्ष) का कारण होकर उसकी सिद्धि कराने में समर्थ होती है।101 ।
2. तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन का मुख्य हेतु- सर्वोत्कृष्ट पुण्य प्रकृति रूप तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन बीस स्थानों की आराधना से होता है। पंचपरमेष्ठी की अंत:करण पूर्वक वंदना-स्तुति करने से बीस स्थानों में से आठ