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________________ वन्दन आवश्यक का रहस्यात्मक अन्वेषण ...213 3. काल आसादना- आहार के योग्य-अयोग्य अथवा सुभिक्ष-दुर्भिक्ष काल की प्राप्ति होना, इष्ट-अनिष्ट काल आसादना है। 4. भाव आसादना- औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सान्निपातिक भाव की प्राप्ति होना भाव आसादना है। यह वर्णन आशातना शब्द के स्पष्टीकरण हेतु किया गया है।31 निशीथभाष्य में मिथ्याप्रतिपत्ति रूप आशातना के चार प्रकार बतलाये गये हैं 1. द्रव्य आशातना- गुरु से पूछे बिना या उनकी अनुज्ञा के बिना आहार, वस्त्र आदि का उपभोग करना, द्रव्य आशातना है। 2. क्षेत्र आशातना- गुरु के आगे-पीछे या पार्श्व में सटकर चलना, बैठना या खड़े होना क्षेत्र आशातना है। 3. काल आशातना- रात्रि या विकाल में गुरु के द्वारा बुलाये जाने पर सुनकर भी अनसुना कर देना काल आशातना है। 4. भाव आशातना- गुरु की बात को स्वीकार नहीं करना, उनके समक्ष कठोर बोलना, बीच में बोलना आदि भाव आशातना है। कदाच गुरु द्वारा व्याख्यान देते हुए या वाचना मंडली आदि में किसी गलत तत्त्व की प्ररूपणा हो जाये तो शिष्य वहाँ कुछ भी न बोले। यदि वह उसका सम्यक् अर्थ जानता हो, तो गुरु को एकांत में बतलाए। ऐसा करने वाला शिष्य आशातना से बच जाता है। यद्यपि उक्त चार प्रकार की आशातना में समस्त आशातनाओं का अन्तर्भाव हो जाता है किन्तु वन्दन आवश्यक के मूलसूत्र में 'आसायणाए तित्तीसनयराए' पद है। इसमें सूक्ष्म से सूक्ष्म तैंतीस प्रकार की आशातना से निवृत्त होने का संकल्प किया गया है। अत: वन्दन आवश्यक के अधिकारी को इन आशातनाओं से बचना चाहिए, ताकि इस क्रिया का सम्यक् फलित प्राप्त कर सके।82 दशाश्रुतस्कन्ध,83 प्रवनचसारोद्धार84, गुरुवंदणभाष्य85 में वर्णित तैंतीस आशातनाएँ निम्न प्रकार हैं 1. पुरोगमन- पुरः- आगे, शिष्य के द्वारा बिना कारण गुरु से आगे चलना, पहली आशातना है। मार्ग दिखाने आदि कारणों से आगे चलने में कोई दोष नहीं है।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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