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________________ 200... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में तुमसे क्षमा मांगता हूँ। इस प्रकार वंदनसूत्र एवं वंदनविधि के माध्यम से गुरु और शिष्य के मध्य उच्चकोटि का आध्यात्मिक सम्बन्ध स्थापित होता है। गुरु-शिष्य के प्रशस्त सम्बन्ध पर ही धर्म मार्ग का प्रवर्तन अवलम्बित है। अतः अर्हत् उपदिष्ट वन्दन आवश्यक अपरिहार्य रूप से अनुसरणीय है 1 52 यह सूत्र आवश्यकसूत्र के वंदन नामक तृतीय अध्ययन में उल्लेखित हैं। कृतिकर्म करने का अधिकारी कौन? वन्दन चित्त निर्मलता एवं परिणाम विशुद्धि का प्रतीक है अतः योग्य व्यक्ति ही इस क्रिया का अधिकारी हो सकता है। श्वेताम्बर आचार्यों ने इस विषय में कुछ नहीं कहा है, किन्तु दिगम्बर साहित्य में इसका स्पष्ट वर्णन प्राप्त होता है। आचार्य वट्टकेर रचित मूलाचार में वन्दन अधिकारी की चर्चा करते हुए निरूपित किया है कि जो पाँच महाव्रतों के अनुष्ठान में तत्पर हैं, धर्म के प्रति उत्साही हैं, उद्यमवान् हैं, मान कषाय रहित हैं, कर्म निर्जरा के इच्छुक हैं, दीक्षा से लघु हैं, ऐसा चारित्रात्मा कृतिकर्म करें। 53 यद्यपि मूलाचार मुनि आचार का ग्रन्थ होने से इसमें मुनियों के लिए कृतिकर्म का उपदेश दिया है, परन्तु यथोचित गुणनिष्पन्न गृहस्थ भी कृतिकर्म कर सकता है। अमितगति श्रावकाचार में कहा गया है कि जिस प्रकार रोगी को निरोगता की प्राप्ति होने पर तथा चक्षुहीन को नेत्रज्योति की प्राप्ति होने पर प्रसन्नता एवं संतोष होता है उसी प्रकार जिनप्रतिमा के दर्शन से जिसका हृदय प्रफुल्लित होता हो, परीषहों को जीतने में समर्थ हो, शान्त परिणामी हो, जिनागम विशारद हो, सम्यग्दर्शन से युक्त हो, आवेश रहित हो, गुरुजनों के प्रति समर्पित हो, प्रिय भाषी हो, ऐसा साधक इस आवश्यक कर्म को करने का अधिकारी हो सकता है। 54 चारित्रसार में सम्यग्दृष्टि जीव को वन्दन करने के योग्य माना गया है 155 वन्दन योग्य कौन? अनन्त संसार सागर से तिरना हो, तो गुरु रूपी वाहन अनिवार्य है, भयंकर भवारण्य को निर्बाध रूप से पार करना हो, तो गुरु रूपी सार्थवाह की जरूरत है, इसी तरह अज्ञान रूपी घोर अंधकार का नाश करके आत्म ज्योति
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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