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________________ वन्दन आवश्यक का रहस्यात्मक अन्वेषण... 193 है वह स्तोभवंदन कहलाता है। थोभवंदन- दो खमासमण पूर्वक होता है। दो हाथ, दो घुटने एवं मस्तक– इन पाँच अंगों को झुकाकर वन्दन करना थोभवंदन है। थोभ का प्राकृत-देशज शब्द 'छोभ' है अतः मूलपाठ में इसका नाम छोभ ही है। इस प्रकार थोभवंदन करते समय इस सूत्र का उच्चारण किया जाता है। इस सूत्र का दूसरा नाम प्रणिपातसूत्र है। यह सूत्रपाठ क्षमाश्रमण (मुनि) को वन्दन करने में उपयोगी होने से इसका एक नाम खमासमणसूत्र भी है। यह ज्ञातव्य है कि सामायिक, प्रतिक्रमण, चैत्यवंदन आदि धार्मिक क्रियाओं में खमासमणसूत्र का विशेष प्रयोग होता है अतः इस सूत्र की परिगणना अति उपयोगी सूत्र में की गई है। प्रबोध टीकाकार के अनुसार खमासमणसूत्र - सुगुरुवंदनसूत्र के आधार से योजित है तथा ओघनियुक्ति (203) की द्रोणाचार्य टीका में इसका पाठ उपलब्ध है। 46 सुखशाता - पृच्छासूत्र - इसका दूसरा नाम 'गुरु निमंत्रण सूत्र' है। इस सूत्र के द्वारा शिष्य गुरु से सुखपृच्छा करता है कि आपकी विगत रात्रि या विगत दिन सुखपूर्वक बीता होगा, आपकी तपश्चर्या सुखपूर्वक प्रवर्त्तमान होगी, आपकी संयमयात्रा का निर्वाह सुखपूर्वक हो रहा होगा। तत्पश्चात आहार- पानी के लिए निमंत्रण देकर 'धर्मलाभ' प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करता है। तब गुरु - आमंत्रण स्वीकार या निषेध न करते हुए 'वर्तमान योग' शब्द का उच्चारण करते हैं। नियमतः साधुओं का व्यवहार वर्तमानकालिक होता है। महानिशीथसूत्र में कहा भी गया है कि- आयुष्य का विश्वास नहीं है और करणीय कार्यों में अनेक अंतराय संभव है, इस कारण साधुओं का व्यवहार सदैव वर्तमान योग पूर्वक ही होता है। 47 वन्दन के लिए उपस्थित शिष्य द्वारा यह सूत्रपाठ दोनों हाथ जुड़े हुए अर्धावन मुद्रा में बोला जाता है। इस सूत्र के माध्यम से शरीर - संयम - तप आदि से सम्बन्धित प्रश्न पूछने का प्रयोजन यह है कि निष्परिग्रही - निर्ममत्वी मुनियों की वास्तविक परिस्थिति का संकेत मात्र भी मिल जाए या किसी तरह के उपायों की योजना करनी हो, तो सम्भव होता है। इससे गुरु सेवा का पुण्य लाभ अर्जित होता है, जो तीर्थंकर
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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