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________________ 186...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में मूलाचार के पर्यावलोकन से यह भी अवगत होता है कि दिगम्बर सम्प्रदाय में देववन्दन, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय आदि अनुष्ठान करते समय कायोत्सर्ग विधि की जाती है और वह कृतिकर्म पूर्वक ही होती है। कृतिकर्म में 'सामायिक दण्डक' और 'थोस्सामिस्तव'- ये दो पाठ बोले जाते हैं। इन दो सूत्रपाठों के प्रारम्भ और अन्त में ही उपर्युक्त क्रियाकर्म सम्पन्न करते हैं। इससे स्पष्ट है कि दिगम्बर मान्य कृतिकर्म विधि श्वेताम्बर परम्परा से सर्वथा भिन्न हैं, यद्यपि बारह आवर्त, चार शिरोनति आदि के नामों में साम्य है। तुलना- यदि पूर्व निर्दिष्ट वंदन विधि का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो निम्न तथ्य स्पष्ट होते हैं • श्वेताम्बर परम्परा में बारह आवर्त आदि 25 आवश्यक रूप क्रियाओं को कृतिकर्म कहा है तथा इस क्रियानुष्ठान के लिए एक स्वतन्त्र सूत्र है, जो 'सुगुरु वंदन सूत्र' के नाम से प्रसिद्ध है जबकि दिगम्बर परम्परा में वैसा नहीं है। • श्वेताम्बर परम्परा में कृतिकर्म (द्वादशावर्त्तवन्दन) के आठ कारण माने गये हैं जबकि दिगम्बर मत में कृतिकर्म के प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, वन्दन और योगभक्ति- ऐसे चार कारण माने गये हैं। • श्वेताम्बर मान्य आवश्यकनियुक्ति एवं दिगम्बर मान्य मूलाचार में मुनियों के लिए दिन में चौदह बार कृतिकर्म करने का उल्लेख है। प्रभातकालीन प्रतिक्रमण के चार और स्वाध्याय काल के तीन, इसी तरह सन्ध्याकालीन प्रतिक्रमण के चार और स्वाध्याय काल के तीन 7 + 7 = चौदह क्रिया कर्म होते हैं। किन्तु मूलाचार में अहोरात्रि में अट्ठाईस कायोत्सर्ग करने का भी निरूपण है। इसका स्पष्टार्थ यह है कि दिन के 14 और रात्रि के 14 कुल मिलाकर 28 कृतिकर्म होते हैं और प्रत्येक कृतिकर्म का एक कायोत्सर्ग होता है अथवा प्रत्येक कायोत्सर्ग में एक कृतिकर्म होता है। ऐसा वर्णन श्वेताम्बर परम्परा में प्राप्त नहीं होता है।34 दिगम्बर मान्यतानुसार दैवसिक-रात्रिक प्रतिक्रमण सम्बन्धी आठ, त्रिकाल देववन्दन सम्बन्धी छह, पूर्वाह्न, अपराह्न, पूर्वरात्रि और अपररात्रि- इन चार कालों में तीन बार स्वाध्याय सम्बन्धी बारह, रात्रियोग ग्रहण और विसर्जनइन दो समयों में दो बार योगभक्ति सम्बन्धी दो- इस प्रकार कुल अट्ठाईस कायोत्सर्ग होते हैं।35 • यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि दिगम्बर के अनुसार देववन्दन, प्रतिक्रमण,
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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