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________________ 178...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में को वन्दन करने गये तो उन्होंने पूछा- हे प्रभु! आज आपको सर्वप्रथम वन्दना किसने की? प्रभु ने कहा- सर्वप्रथम द्रव्य वंदना पालक ने की और भाव वन्दना शाम्ब ने की। कृष्ण ने शाम्ब की वन्दना वास्तविक जानकर अपना अश्वरत्न उसे प्रदान किया। __यहाँ पालक का वन्दन द्रव्य विनय रूप और शाम्ब का वन्दन भाव विनय रूप है।22 समाहारत: उपयोगयुक्त तथा मन, वाणी एवं शरीर के उत्तम व्यापारयुक्त किया गया वन्दन ही चितिकर्म आदि पाँच प्रकार रूप वन्दन है। वन्दन क्रिया चितिकर्म आदि से युक्त ही होती है केवल परिणाम शुद्धि के आधार पर द्रव्यकर्म या भावकर्म वन्दन कहा जाता है। दिगम्बर परम्परा में तो वन्दनक्रिया ‘कृतिकर्म' के नाम से ही प्रसिद्ध है। यहाँ विशेष रूप से यह उल्लेखनीय है कि आवश्यकनियुक्ति आदि ग्रन्थों में वन्दन के पर्यायवाची नामों में क्रम एवं स्वरूप की अपेक्षा साम्य है, केवल गुरुवंदनभाष्य में अन्तिम दो नामों का क्रम भिन्न हैं। वन्दना के प्रकार __ अध्यात्म आरोहण का एक आवश्यक कृत्य है- वंदन। साधक के तरतम भाव, देश-कालगत स्थिति एवं निक्षेपादि की अपेक्षा इसके दो, तीन, छह आदि प्रकार बताए गए हैं। आवश्यक टीका में वन्दन के दो प्रकार कहे गये हैं- 1. द्रव्य वन्दन और 2. भाव वन्दन। भाव शून्य, लज्जावश, देखा-देखी शिष्टाचार पालन अथवा फलाकांक्षा से उत्प्रेरित होकर वन्दन करना, द्रव्य वन्दन है तथा आत्म शुद्धि को लक्ष्य में रखकर वन्दन करना, भाव वन्दन है। द्रव्य वंदन संसार सर्जन का हेतु बनता है जबकि भाव वंदन आत्मविशुद्धि का सेतु है।23 भगवतीआराधना टीका में अभ्युत्थान और प्रयोग के भेद से दो प्रकार बतलाए हैं। इन दोनों में से प्रत्येक के अनेक भेद कहे हैं। आचार्य आदि के समक्ष खड़े होना, बद्धांजलि युक्त होना, नतमस्तक होना, पीछे-पीछे चलना आदि अभ्युत्थान वन्दन है तथा बारह आवर्त, चार शिरोनति और मन, वचन, काया की शुद्धिपूर्वक वन्दन करना प्रायोगिक वन्दन है।24 गुरुवंदन भाष्य में वंदन के निम्न तीन प्रकार निर्दिष्ट हैं- 1. फेटावंदन 2. थोभवंदन और 3. द्वादशावर्त्तवन्दन।25
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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