________________
चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक का तात्त्विक विवेचन ...167 12. सारमेतन्मया लब्धं, श्रुताब्धेरवगाहनात् । भक्तिर्भागवती बीजं, परमानन्दसंपदाम् ।।
___द्वात्रिंशत् द्वात्रिंशिका, 4/32 13. प्रबोधटीका, भा. 1, पृ. 597-598 14. प्रतिमाशतक, पृ. 21 15. शांतिसरूप एम भावसे, जे धरी शुद्ध प्रणिधान रे। आनंदघनपद पामसे, ते लहेसे बहुमान रे॥
आनंदघनकृत शांतिजिनस्तवन 16. चउवीसइत्थयस्स उ णिक्खेवो होइ वाम णिप्फनो । चउवीसइस्स छक्को, थयस्स उ चउव्विहो होइ ।
(क) आवश्यकनियुक्ति, 1056 नाम ठवणा दविए खित्ते, काले तहेव भावे । चउवीसइस्स एसो, निक्खेवो छव्विहो होइ ।
(ख) विशेषावश्यकभाष्य, 190 (ग) मूलाचार, 7/540
(घ) अनगारधर्मामृत, 8/38-39 की टीका 17. गोचरोऽपि गिरामासां, त्वमवाग्गोचरी मतः । स्तोता तथाप्यसन्दिग्धं, त्वत्तोऽभीष्टफलं भजेत् ।
महापुराण, भा. 2/25/219 18. अनगार धर्मामृत, 8/40 19. वही, 8/41 की टीका पृ. 583-586 20. मूलाचार, 7/540 की वृत्ति 21. अनगारधर्मामृत, 8/44 की टीका 22. मूलाचार, 7/540 की वृत्ति 23. जैन आचार सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 29 24. प्रबोधटीका, भा. 1, पृ. 603-604 25. भत्तीइ जिणवराणं खिज्जंती पुव्वसंचिया कम्मा।
आवश्यकनियुक्ति, 1097 26. उत्तराध्ययनसूत्र, 29/10