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164...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में चतुर्विंशतिस्तव (लोगस्ससूत्र) में छः आवश्यक कैसे? ___ लोगस्ससूत्र मोक्षाभिलाषी साधकों के लिए कवच के समान है, क्योंकि इसका साधनात्मक प्रयोग करने पर पूर्व संचित कर्म विनष्ट होने के साथ-साथ नवीन पापास्रवों का आगमन भी रूक जाता है। क्रोधादि मलीन भावों से आत्मा की सुरक्षा होती है। यह आत्मविकासी परम बीज रूप सूत्र है।
प्रबुद्धचेताओं ने इस सूत्र में षडावश्यक की भाव कल्पना इस प्रकार की हैसूत्र पाठ
आवश्यक 1. कित्तइस्सं
सामायिक आवश्यक 2. चउवीसं पि केवली
चतुर्विंशतिस्तव चउवीसं पि जिणवरा 3. वंदे-वंदामि
वंदना आवश्यक 4. विहुयरयमला-पहीणजरमरणा प्रतिक्रमण आवश्यक 5. आरूग्ग-बोहिलाभ-समाहि
कायोत्सर्ग आवश्यक वर मुत्तमं 6. सिद्धा-सिद्धिं मम दिसंतु
प्रत्याख्यान आवश्यक उपसंहार __इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में होने वाले श्री ऋषभदेव आदि चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति करना ही चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक है। यह आवश्यक तीर्थंकरों की स्तुति पूर्वक आत्म साक्षात्कार के उद्देश्य से किया जाता है। आत्मानुभूति के लिए परमावश्यक है कि हम तीर्थंकर के वास्तविक स्वरूप से परिचित बने, उनके बाह्य और आभ्यन्तर स्वरूप को भलीभाँति समझें
सामान्यतया चौबीस तीर्थंकर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से भिन्न हैं किन्तु गुणों की दृष्टि से सभी में समानता है अत: सभी समान रूप से स्तुति करने योग्य हैं। प्रत्येक तीर्थंकर एक समान शक्तिशाली, प्राभाविक और चमत्कारिक अतिशयों से युक्त होते हैं, क्योंकि प्रत्येक तीर्थंकर को घातीकर्म के क्षय से उत्पन्न हुआ केवलज्ञान समान होता है। प्रत्येक तीर्थंकर वाणी आदि पैंतीस गुणों से युक्त होते हैं, सुर-असुर और राजाओं के द्वारा पूजने योग्य होते हैं तथा वे जहाँ-जहाँ विचरण करते हैं वहाँ-वहाँ ईति और भीति आदि उपद्रवों का नाश हो