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________________ 162...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में आलंबन भी है। इस स्तव के प्रयोग द्वारा संसार से सिद्धालय, देह से देहातीत एवं मृत्युलोक से अमर लोक तक की यात्रा अव्याबाध रूप से सम्पन्न की जा सकती है। इस स्तोत्र में अनंत शक्तियाँ निहित है। साध्वी दिव्यप्रभाजी ने इसमें नवत्रिक की परिकल्पना की है, जो इस स्तव की गुप्त शक्ति का परिचायक है। साध्वी श्री के अभिप्रायानुसार इन त्रिकों का लयबद्ध ध्यान करते हुए उसके साथ एकाकार हो जाये अथवा तादात्म्य सम्बन्ध स्थापित हो जाये तो नि:सन्देह शाश्वत सुख की अनुभूति और आत्म साक्षात्कार किया जा सकता है। नवत्रिक का स्वरूप इस प्रकार है1. परमत्रिक- तित्थयरे-जिणे-अरिहंते- गाथा 1 इस त्रिक में परमाराध्य स्वरूप तीर्थंकर परमात्मा के तीन स्वरूप उपदर्शित हैं। 2. प्रतिष्ठान त्रिक- यह त्रिक 2, 3, 4- इन गाथा त्रिक में आए हुए चौबीस तीर्थंकरों के नामों पर आधारित है। इस त्रिक में 24 तीर्थंकर के नामों को साढ़े तीन आवर्तों में एवं स्वाधिष्ठान आदि चक्रों में प्रतिस्थापित करने की प्रक्रिया उपलब्ध है। 3. प्रणिधान त्रिक- यह त्रिक अभिथुआ-विहुयरयमलापहीणजर मरणा- गाथा-5 की प्रथम पंक्ति पर आधारित है। इसमें ध्यान एवं गुण स्मरण द्वारा परमात्मा के साथ सम्बन्ध स्थापित किया गया है। 4. प्रस्तुति त्रिक- यह त्रिक मए-मे-मम गाथा 5-7 के आधार पर है। इसमें साधक द्वारा आत्म अस्तित्व को स्वीकार कर प्रकर्ष भावों के साथ स्वयं को परमात्म चरणों में समर्पित करने की प्रस्तुति की गई है। 5. प्रसाद त्रिक- यह त्रिक गाथा 5-7 पर आधारित है। इनमें पसीयंतु समाहि वरमुत्तमं दितु-सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु- ये तीनों सार्थक तुतियाँ है। तीर्थंकर परमात्मा स्तुति का श्रेष्ठ फल प्रदान करते हैं। दूसरा, उत्तम पुरुषों का प्रसाद भी उत्तम होता है। उत्तम समाधि और सिद्ध पद का प्रसाद तीर्थंकर की स्तुति एवं आराधना के बल पर ही प्राप्त किया जा सकता है। ये उत्तम कोटि के प्रसाद तीर्थंकर पुरुष के अतिरिक्त कोई भी देने में समर्थ नहीं है।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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