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________________ चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक का तात्त्विक विवेचन ...139 3. द्रव्यस्तव- तीर्थंकरों का शरीर औदारिक होने से उनके वर्ण, चिह्न, गुण, ऊँचाई आदि का वर्णन करते हुए उनका स्तवन करना, द्रव्यस्तव है। यह स्तव अनेक प्रकार से किया जाता है। तीर्थंकरों के शारीरिक गुणों का स्तवन इस प्रकार करें- नौ-नौ व्यंजन और एक सौ आठ लक्षणों के द्वारा शोभित और जगत को आनन्द देने वाला अर्हन्तों का शरीर जयवन्त हो मैं उन जिनेन्द्रों को नमस्कार करता हूँ जिनके मुक्त होने पर शरीर के परमाणु बिजली की तरह स्वयं ही विशीर्ण हो जाते हैं। यहाँ व्यंजन का अर्थ- तिल, मस्सा आदि चिह्नों से है और लक्षण का अर्थ-शंख, कमल आदि चिह्नों से है। तीर्थंकरों के वर्णादि गुणों का कीर्तन इस प्रकार करें- श्री चन्द्रप्रभु और पुष्पदन्त (सुविधिनाथ) के शरीर का वर्ण कुन्द पुष्प के समान श्वेत है। पद्मप्रभु के शरीर का वर्ण रक्त कमल के समान और वासुपूज्य का पलाश के समान लाल है। मुनिसुव्रत और नेमिनाथ के शरीर का वर्ण श्याम है। पार्श्व और सुपार्श्व का शरीर हरितवर्णी है। शेष सोलह तीर्थंकरों का शरीर सवर्ण के समान है। ये सभी तीर्थंकर मेरे पापों का नाश करें। तीर्थंकरों के देहकान्ति आदि की अनुशंसा इस प्रकार करें- जो अपने शारीरिक कान्ति से दस दिशाओं को स्नान कराते हैं, अपने तेज से उत्कृष्ट तेज रूप सूर्य के प्रकाश को भी रोक देते हैं, अपने रूप से मनुष्यों के मन को हर लेते हैं। अपनी दिव्यध्वनि के द्वारा भव्य जीवों के कर्णयुगलों में साक्षात सुख रूप अमृत की वर्षा करते हैं ऐसे सहस्राधिक गुणों से युक्त तीर्थंकर वन्दनीय है। इसी तरह शरीर की ऊँचाई, माता द्वारा देखे गये स्वप्न, माता के वंश आदि का स्मरण करते हुए स्तवन करना, द्रव्यस्तव है।19 ___4. क्षेत्रस्तव- कैलाशगिरि, सम्मेतगिरि, उज्जयन्तगिरि, पावापुरी, राजगृही, चम्पापुरी आदि निर्वाण क्षेत्रों का, समवसरण क्षेत्रों का और सिद्धार्थ आदि उपवनों का स्तवन करना, क्षेत्रस्तव है। 5. कालस्तव- स्वर्गावतरण, जन्म, निष्क्रमण, केवलज्ञान और निर्वाणइन कल्याणकों के काल का स्तवन करना यानी उन-उन कल्याणकों के दिन भक्ति पाठ आदि करना अथवा उन-उन तिथियों की स्तुति करना कालस्तव है। ____6. भावस्तव- भव्य जीवों के द्वारा शुद्ध जीव के असाधारण गुणों अथवा केवलज्ञान, केवलदर्शन आदि गुणों का स्तवन करना, भावस्तव है।20 जैसे जल
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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