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सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण... 129
सामायिक में दस मन का, दस वचन का, बारह काया का बत्तीस दोषां मांहेलो कोई दोष लग्यो होय तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥
सामायिक पारने के बाद निम्नोक्त पाठ बोला जाता है
फासियं, पालियं, सोहियं, तिरियं किट्टियं, अणुपालियं, आणाए, आराहियं, न भवइ इण आठ पच्चक्खाण सहित सामायिक नहीं पाली होय तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।।
174. सचित्रश्रावकप्रतिक्रमण (तेरापंथी)
175. श्रावकचर्या (दिगम्बर), पृ. 238-44
176. आवर्त्त - प्रशस्तयोग को एक अवस्था से हटाकर दूसरी अवस्था में ले जाने का नाम आवर्त्त है। आवर्त्त बारह होते हैं। सामायिकदण्ड के आरम्भ और समाप्ति में तीन-तीन, इसी तरह चतुर्विंशतिस्तवदण्डक के प्रारम्भ और अन्त में तीनतीन. कुल बारह आवर्त्त होते हैं।
177. शिरोनति - सिर झुकाने की क्रिया शिरोनति कहलाती है।
178. कृतिकर्म क्रिया चारों दिशाओं में की जाती है। उसकी विधि यह है - पूर्व दिशा की ओर मुख करके नौ बार नमस्कारमन्त्र का जाप करना, फिर पूर्व दिशा और आग्नेय (कोण) दिशा में स्थित 1. अरिहन्त 2. सिद्ध 3. केवलिजिन 4. आचार्य 5. उपाध्याय 6. साधु 7. जिनधर्म 8. जिनागम 9. जिनप्रतिमा 10. जिनचैत्य को मैं वन्दना करता हूँ- ऐसा बोलना। यह पूर्व दिशा का कृतिकर्म हुआ। शेष दिशाओं-विदिशाओं में भी इसी प्रकार की क्रिया करना कृतिकर्म कहलाता है। श्रावकचर्या, पृ. 240
179. भंते इति गुरोरामन्त्रणम् - योगशास्त्र स्वोपज्ञवृत्ति, प्रकाश - 3 180. विशेषावश्यकभाष्य, गा. 3439, 3449
181. श्रीश्राद्ध प्रतिक्रमणसूत्र, प्रबोधटीका भा. 1, पृ. 208-238 182. सामायिकसूत्र पर आधारित, पृ. 95-97
183. तिलकाचार्य सामाचारी, पृ. 15
184. वही, पृ. 15
185. गीता, 6/33, 2/48
186. धम्मपद, राहुल सांस्कृत्यायन, 14/7