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________________ सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण...127 164. श्रावकपंचप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. 28-35, 50-52 165. पंचप्रतिक्रमणसूत्र (अचलगच्छीय), पृ. 28-35 166. 'पंचिंदियसूत्र' यह है पंचिंदियसंवरणो, तह नवविह-बंभचेर-गुत्तिधरो, चउविहकसायमुक्को, ईअ अट्ठारसगुणेहिं संजुत्तो ।।1।। पंचमहवयजुतो, पंचविहायारपालण समत्थो। पंचसमिओ तिगुत्तो, छत्तीसगुणो गुरु मज्झ ।।2।। 167. 'जीवराशि क्षमापना पाठ' निम्न है सात लाख पृथ्वीकाय, सात लाख अप्काय, सात लाख तेउकाय, सात लाख वाउकाय, दस लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय, चौदह लाख साधारण वनस्पतिकाय, दो लाख बेइन्द्रिय, दो लाख तेइन्द्रिय, दो लाख चउरिद्रिय चार लाख देवता, चार लाख नारकी, चार लाख तिर्यंच पंचेन्द्रिय, चौदह लाख मनुष्य एवं चार गतिना चौरासी लाख जीवाजोनी मां म्हारे जीवे जे कोई जीव हण्यो होय हणाव्यो होय हणतां प्रत्येक अनुमोद्यो होय ते सव्वे हुं मन वचन काया करी तस्स मिष्छामि दुक्कडं। 168. 'द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव का पाठ' इस प्रकार है द्रव्यथकी लूगडां, लतां, घरेणां, गाढां, पाथरपुं, नवकारवाली, धार्या प्रमाणे मोकला छे. क्षेत्रथकी उपासराना (आ जग्याना) बारणानी मांहेली कोरे कारणे जयणा छे, कालथकी सामायिक निपजे तिहां सुधी, भावथकी यथाशक्तिये रागद्वेषे रहित व्रती संघाते बोलवानो आगार छ, अव्रती संघाते बोलवानं पच्चक्खाण छे अथवा जयणा छे. अ रीत छ कोटीओ करी सामायिक करूं, सामायिकव्रत उच्चार करवा उभा थईने अनक नवकार गjजो । 169. अचलगच्छ की परम्परानुसार सामायिक पारने का पाठ यह है जं जं मणेण बद्धं, जं जं वाया य भासियं पावं। काअणवि दुट्ठकयं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥1॥ सव्वे जीवा कम्मवस, चउदह रज्ज भमंत ।। ते मे सव्व खमाविया, मुज्ज वि तेह खमंत ॥2॥ खमी खमावी म खमी, छव्विह जीव निकाय । शुद्ध मने आलोवतां, मुज मन वेर न थाय ॥3॥ दिवसे दिवसे लक्खं, देई सुवन्नस्स खंडिअं एगो। एगो पुण सामाइयं, करेइ न पहुप्पए तस्स ।।4।।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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