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सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण ...95
उपरोक्त प्रमाणों से सुस्पष्ट होता है कि जैनाचार्यों ने मुख्य रूप से प्रात:काल एवं सायंकाल को सामायिक के लिए उपयुक्त माना है। इसके पीछे यह हेतु दिया जाता है कि प्रभातकाल का प्राकृतिक वातावरण इतना सुरम्य और मनोहर होता है कि उस छटा को देखने वाला आनन्द विभोर हुए बिना नहीं रह . सकता। परिणामत: मानसिक एकाग्रता में अभिवृद्धि होती है, जो सामायिक जैसी साधना के लिए अत्यन्त जरूरी है। इसके सिवाय प्रात:काल में एकान्त, शान्ति, प्रसन्नता आदि की सहज रूप से अनुभूति होती है। इस समय के वातावरण में हिंसा और क्रूरता नहीं होती, अन्य व्यक्तियों के साथ किसी तरह का सम्पर्क न होने के कारण असत्य भाषण, कटु व्यवहार, कलह, संघर्ष, दुर्भाव आदि का अवसर भी प्राप्त नहीं होता, लुटेरे आदि चौर्यकर्म से निवृत्त हो जाते हैं, कामी पुरुष कामवासना से निवृत्ति पा लेते हैं। इस प्रकार हिंसा, असत्य, स्तेय, मैथुन आदि दुष्कार्यों का अभाव होने से वायुमण्डल परिशुद्ध होता है। अत: सामायिक की पवित्र क्रिया के लिए यह समय सर्वसम्मत एवं सर्वोत्तम है। यदि प्रभातकाल में न हो सके, तो सायंकाल भी दूसरे समयों की अपेक्षा शान्त माना गया है। समत्व, सम्यक्त्व और सामायिक में भेद या अभेद?
सम् और सम्यक् दोनों अव्यय शब्द हैं। शम् अव्यय से मत्वर्थक अच् प्रत्यय होने पर 'सम' यह अकारान्त शब्द बनता है फिर ‘सम्' में 'तव' प्रत्यय जोड़ देने पर समत्व और गमनार्थक 'अय्' धातु एवं 'इक्' प्रत्यय का योग करने पर सामायिक शब्द प्रतिफलित होता है। इस प्रकार ‘सम्' पद से समत्व और सामायिक ये दो शब्द निष्पन्न होते हैं तथा 'सम्यक्' में 'त्व' प्रत्यय संयुक्त करने पर सम्यक्त्व शब्द बनता है। - जैन दर्शन में समत्व, सम्यक्त्व और सामायिक ये तीनों शब्द एक-दूसरे के पर्यायवाची रूप में प्रयुक्त होते रहे हैं, फिर भी अर्थ की अपेक्षा से आंशिक भेद है। ____ चित्त का विक्षोभों या तनावों से रहित होना समत्व है, समत्व युक्त चित्त सम्यक्त्व है और जिसके द्वारा समत्व भाव की प्राप्ति हो, वह सामायिक है। सामायिक साधन है, समत्व साधना है और सम्यक्त्व साध्य है। वस्तुतः सामायिक की साधना ही समत्व की साधना है और उसकी फलश्रुति सम्यक्त्व