________________
सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण ...93 चाहिए। वर्तमान में दो या तीन सामायिक एक साथ लेने का विशेष प्रचलन है, वह कितना सार्थक और उचित है, विद्वानों के लिए गवेषणीय है?
सामायिक के सम्बन्ध में यह भी समझने योग्य है कि सामायिक ग्रहण का पाठ उच्चारित करने के बाद से एक मुहूर्त (48 मिनट) गिनना चाहिए और उतना समय पूर्ण होने पर सामायिक पूर्ण करने की विधि करनी चाहिए। मुहूर्त में से एक समय या एक क्षण भी कम हो तो अन्तर्मुहूर्त माना जाता है। सामायिक कब करनी चाहिए?
सामायिक, साधना क्षेत्र की प्राथमिक भूमिका है अत: इसके अभाव में गृहस्थ एवं श्रमण दोनों साधकों की साधनाएँ पूर्ण नहीं हो सकती, परन्तु आत्मविकास की दृष्टि से दोनों की सामायिक में अन्तर है। गृहस्थ की सामायिक अल्पकालिक होती है और साधु की यावत्कालिक-जीवन पर्यन्त के लिए होती है। यद्यपि लक्ष्य की अपेक्षा दोनों की सामायिक समरूप है।
श्रमण की सामायिक के विषय में तो यह प्रश्न ही नहीं उठता कि कब करना चाहिए? किन्तु गृहस्थ की यह साधना नियतकालिक होने से इस सन्दर्भ में विचार करना आवश्यक है।
सामान्यतया सामायिक काल के सम्बन्ध में दिनोंदिन अनियमितता बढ़ती जा रही है। जिसे जब समय मिले, तभी कर लेता है। कोई प्रात:काल तो कोई मध्याह्न, तो कोई शरीर को विश्राम देने हेतु अकाल वेला में भी सामायिक लेकर नींद के लटके लेते रहते हैं। कुछ गृहस्थ अपनी सुविधा को ध्यान में रखते हुए यह तर्क भी देते हैं कि 'यह तो धर्म क्रिया है, जब जी चाहे, तभी कर लेनी चाहिए। समय के बंधन में पड़ने से क्या लाभ?'
इस प्रकार के कुतर्क अधर्म को ही पुष्ट करते हैं। अत: जन-सामान्य के लिए यह ज्ञातव्य है कि आप्तपुरुषों ने धर्म साधना को नियमित समय में करने पर विशेष बल दिया है। प्रतिक्रमण, प्रतिलेखन, स्वाध्याय, भिक्षाचर्या आदि आवश्यक क्रियाओं के लिए भी समय का प्रावधान है, यदि असमय में की जाए तो उसके लिए प्रायश्चित्त का विधान है। धार्मिक क्रियाएँ तो मानव मन को और अधिक नियंत्रित करती है अत: इनके लिए समय का पाबंद होना अति आवश्यक है।
यह उचित है कि जो साधक सामान्य स्थिति से बहुत ऊपर उठ चुका है