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________________ सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण ... 85 करना चाहिए। उस युग में मात्र अधोवस्त्र (धोती) ही सामायिक की वेशभूषा थी, जबकि वर्तमान में उत्तरीय ( ऊपर ओड़ने का वस्त्र) भी ग्रहण किया जाता है। कुछ लोग अपनी सुविधानुसार पगड़ी, कोट, कुरता, पाजामा आदि पहने हुए भी सामायिक कर लेते हैं,जो शास्त्रविरुद्ध है । वस्त्रशुद्धि के सम्बन्ध में यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वस्त्र गंदे न हों, चटकीले - भड़कीले न हों, मल-मूत्र के लिए उपयोग किए हुए न हों, सादे हों और लोकविरुद्ध न हों। आसन, चरवला, मुखवस्त्रिका, माला आदि द्रव्य उपकरण कहे जाते हैं। इन उपकरणों शुद्धि के विषय में यह ध्यान रखना जरूरी है कि जो अधिक हिंसा से निर्मित न हों, सौन्दर्य की बुद्धि से न रखे गए हों, संयम की अभिवृद्धि में सहायक हो, जिनके द्वारा जीवरक्षा भलीभाँति की जा सकती हो, वह द्रव्यउपकरण शुद्धि है। वर्तमान में द्रव्यशुद्धि विचारणीय है। कई साधक सामायिक में कोमल रोएं वाले गुदगुदे आसन रखते हैं अथवा सुन्दरता के लिए रंग-बिरंगे फूलदार आसन बना लेते हैं, किन्तु इस तरह के आसनों की सम्यक् प्रतिलेखना नहीं की जा सकती, अतः आसन सादा होना चाहिए । कुछ बहनें मुखवस्त्रिका का गहना बनाकर ही रख देती हैं, गोटा लगाती हैं, सलमे से सजाती हैं, धागा डालती हैं। ऐसा करने से सामायिक का शान्त वातावरण कलुषित होता है, अतः मुखवस्त्रिका सादी-सफेद - स्वच्छ होनी चाहिए। माला सूत की होनी चाहिए। प्लास्टिक या लकड़ी की माला अशुद्ध मानी गई है। उन मालाओं पर किया गया जाप प्रभावकारी नहीं होता है। 2. क्षेत्र शुद्धि - क्षेत्र शुद्धि से तात्पर्य सामायिक योग्य उत्तम स्थान है। जिन स्थानों पर बैठने से चित्त चंचल न बनता हो, विषय-विकार उत्पन्न न होते हों, क्लेश होने की संभावना न हों, मन स्थिर रहता हो, वह क्षेत्र शुद्ध है। पौषधशाला, उपाश्रय, एकान्तस्थल आदि शुद्ध क्षेत्र माने गए हैं। सामान्यतया घर की अपेक्षा उपाश्रय में सामायिक करना अधिक उचित है। उपाश्रय आत्मसाधना का श्रेष्ठ माध्यम है। उपाश्रय शब्द के तीन अर्थ हैं- प्रथम अर्थ के अनुसार उप-उत्कृष्ट, आश्रय-स्थान अर्थात जो उत्कृष्ट स्थान है वह उपाश्रय है। घर केवल आश्रयभूत होता है जबकि उपाश्रय धर्म साधना के द्वारा इहलोक और परलोक रूप जन्म जन्मान्तर को सफल करने वाला उपयुक्त स्थान होने से उत्कृष्ट आश्रय है।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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