________________
78...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
2. यशोवांछा- स्वयं को यश मिले, अपनी वाह-वाह हो ऐसे प्रयोजन से सामायिक करना।
3. लाभ- सामायिक करूंगा तो धन लाभ होगा, अन्य भौतिक लाभ भी होंगे- इस भाव से सामायिक करना।
4. गर्व- 'मैं बहुत सामायिक करने वाला हूँ' 'मेरी बराबरी कौन कर सकता है?' इत्यादि गर्व पूर्वक सामायिक करना।
5. भय- मैं अपनी जाति में ऊँचे घराने का व्यक्ति हूँ, यदि सामायिक न करूँ, तो लोग क्या कहेंगे? इस प्रकार लोक-निन्दा के भय से सामायिक करना।
6. निदान- प्रतिफल की कामना से सामायिक करना। जैसे- धन, स्त्री, व्यापार आदि में खास लाभ प्राप्त करने के संकल्प पूर्वक सामायिक करना।
7. संशय-'मैं जो सामायिक करता हूँ उसका फल मुझे मिलेगा या नहीं? सामायिक करते-करते इतने दिन हो गए, फिर भी कुछ फल नहीं मिला' इस प्रकार सामायिक फल के सम्बन्ध में संशय रखते हुए सामायिक करना।
8. रोष- क्रोधपूर्वक सामायिक करना।
9. अविनय दोष- सामायिक के प्रति अविनय या अनादर भाव रखते हुए सामायिक करना।
10. अबहुमान- आन्तरिक-उत्साह के बिना या किसी दबाव के कारण सामायिक करना। __ उक्त दस दोष मन के द्वारा लगते हैं।120 वचन सम्बन्धी दस दोष
1. कुवचन- सामायिक में असभ्य, अपमानजनक, कुत्सित, वीभत्स शब्द बोलना।
2. सहसाकार- बिना सोचे-विचारे मन में जैसा आए, वैसे वचन बोलना। . 3. स्वच्छंद- शास्त्र-सिद्धान्त के विरुद्ध कामवृद्धि करने वाले वचन बोलना।
4. संक्षेप- सूत्रपाठ आदि का उच्चारण पूर्णतया न कर उसे आधा-अधूरा बोलना।
5. कलह- सामायिक में कलह पैदा करने वाले शब्द बोलना।
6. विकथा- वह वार्ता जो चित्त को अशुभ भाव या अशुभ ध्यान की ओर प्रवृत्त करती हो, विकथा कहलाती है। विकथा चार प्रकार की होती है