________________
74...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में शान्त हो तो वह भौतिक विकास एवं बौद्धिक विकास का कारण बनता है। स्वयं को सावध कार्यों से निवृत्त करने पर अन्य जीवों के प्रति ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' की भावना विकसित होती है। अनावश्यक कार्यों से निवृत्ति मिलने पर शक्ति एवं समय दोनों की बचत होती है।
यदि प्रबंधन के क्षेत्र में इसकी उपयोगिता देखी जाए तो सामायिक-समय प्रबंधन, भाव प्रबंधन, शक्ति प्रबंधन, समाज प्रबंधन आदि में सहयोगी है। एक स्थान पर बैठकर साधना करने से मन-वचन-काया की एकाग्रता सधती है, एकाग्रता प्रत्येक कार्य में सहायक होती है तथा समय एवं शक्ति आदि की बचत करती है। मानसिक तनाव को दूर करने का यह सर्वश्रेष्ठ उपाय है तथा तनाव रहित स्वस्थ मन से प्रत्येक कार्य स्फूर्ति एवं ताजगी के साथ किया जा सकता है। समस्त विश्व के प्रति सद्भाव का विकास होने से 'सवि जीव करूं शासन रसी, ऐसी भाव दशा मन उल्लसी' जैसे सद्भावों का प्रबंधन होता है। समभाव के द्वारा पक्षपात वृत्ति आदि को न्यून कर समाज के विकास प्रबंधन में यह सहायक हो सकती है। इसी प्रकार स्व प्रबंधन, अध्यात्म प्रबंधन आदि में भी सामायिक साधना फलवती बन सकती है।
आधुनिक युग की अपेक्षा देखें तो यह सर्वाधिक रूप से प्रासंगिक है। आज हर एक इन्सान अशान्ति, असुरक्षा, टेन्शन आदि से मुक्त होने का मार्ग खोज रहा है। उसके लिए तीर्थंकर पुरुषों द्वारा उपदिष्ट सामायिक धर्म सर्वश्रेष्ठ मार्ग है, जिसके प्रयोगात्मक स्वरूप द्वारा संसार में व्याप्त अशांति, तनाव, हिंसक प्रवृत्ति को समाप्त किया जा सकता है।
यह वैश्विक शांति और आध्यात्मिक विकास की अतुलनीय साधना है। इसका तात्कालिक फल है- संवर (पाप निरोध), माध्यमिक फल है- दशांगी सुख एवं चरम फल है- मोक्ष। सामायिक से होने वाले लाभ
सामायिक एक विशुद्ध साधना है।
• गृहस्थ जीवन में इस सामायिक व्रत का बार-बार अभ्यास करने से आत्मा सर्वविरति अर्थात चारित्रधर्म की योग्यता प्राप्त करती है।
• अहर्निश कम-से-कम एक सामायिक करने से स्वाध्यायवृत्ति, संतोषवृत्ति एवं समतावृत्ति का उत्तम अभ्यास होता है। इस सामायिक साधना के