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________________ 62... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में नहीं होता, वह उसका विरहकाल है। श्रुतसामायिक और सम्यक्त्वसामायिक की प्रतिपत्ति का विरहकाल उत्कृष्टतः सात अहोरात्र, देशविरति सामायिक का बारह अहोरात्र और सर्वविरति सामायिक का पन्द्रह अहोरात्र है। इसके पश्चात किसी न किसी जीव की सामायिक की प्रतिपत्ति अवश्य होती है। श्रुतसामायिक और सम्यक्त्वसामायिक की प्रतिपत्ति का विरहकाल जघन्यतः एक समय तथा देशविरति और सर्वविरति सामायिक का विरहकाल जघन्यतः तीन समय है। 70 अविरहकाल- सम्यक्त्वसामायिक, श्रुतसामायिक एवं देशविरतिसामायिक को प्राप्त जीव आवलिका के असंख्येय भाग समयों तक निरंतर एक या दो आदि मिलते हैं, तत्पश्चात उनका विरहकाल प्रारम्भ हो जाता है । चारित्रसामायिक को प्राप्त जीव का अविरहकाल आठ समय तक होता है। उस समय में एक, दो आदि प्रतिपत्ता मिलते हैं, तत्पश्चात उनका विरहकाल प्रारम्भ हो जाता है। सामायिक चतुष्क का जघन्यतः अविरहकाल दो समय का होता है। 71 23. भव– सम्यक्त्वसामायिक और श्रुतसामायिक को प्राप्त जीव क्षेत्रपल्योपम के असंख्यातवें भाग में जितने आकाश प्रदेश होते हैं उत्कृष्ट उतने भव करते हैं तथा जघन्यतः एक भव करते हैं। तत्पश्चात मुक्त हो जाते हैं। चारित्रसामायिक को प्राप्त जीव उत्कृष्ट आठ भव तथा जघन्यतः एक भव करते हैं। श्रुतसामायिक को प्राप्त जीव उत्कृष्टतः अनंत भव तथा सामान्य रूप से एक भव करते हैं जैसे - मरूदेवी माता। 72 24. आकर्ष- एक या अनेक भवों में सामायिक कितनी बार उपलब्ध होती है? सम्यक्त्व सामायिक, श्रुत सामायिक और देशविरति सामायिक एक भव में सहस्रपृथक्त्व (2000 से 9000) बार तक उपलब्ध हो सकती है। सर्वविरति सामायिक एक भव में शतपृथक्त्व (200 से 900) बार तक उपलब्ध हो सकती है। यह उत्कृष्ट आकर्ष का उल्लेख है। न्यूनतम आकर्ष एक भव में एक बार होता है। अनेक भवों की अपेक्षा सम्यक्त्वसामायिक और देशविरतिसामायिक उत्कृष्टतः असंख्येय हजार बार उपलब्ध होती है, सर्वविरति सामायिक दो हजार से नौ हजार बार उपलब्ध होती है तथा श्रुतसामायिक अनंत भवों में अनन्त बार उपलब्ध होती है। 73
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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