________________
सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण ... 61
20. कति - सामायिक के प्रतिपत्ता ( प्राप्त जीव) कितने हैं? सम्यक्त्व सामायिक एवं देशविरति सामायिक के प्रतिपत्ता एक काल में उत्कृष्टत: क्षेत्र पल्योपम के असंख्येय भाग में जितने आकाश प्रदेश होते हैं, उतने हैं। देशविरति सामायिक के प्रतिपत्ता से सम्यक्त्व सामायिक के प्रतिपत्ता असंख्येय गुण अधिक होते हैं। जघन्यतः एक या दो प्रतिपत्ता उपलब्ध होते हैं अर्थात कम से कम एक या दो जीव उक्त दोनों सामायिक से युक्त होते हैं। श्रुत सामायिक को प्राप्त जीव श्रेणी के असंख्यातवें भाग में जितने आकाश प्रदेश होते हैं, उत्कृष्टत: उतने होते हैं । जघन्यतः एक या दो होते हैं। सर्वविरति सामायिक को प्राप्त जीव उत्कृष्टत: सहस्र पृथक् ( दो से नौ हजार) तथा जघन्यतः एक अथवा दो होते हैं। 67
21. अंतर - जीव द्वारा सम्यक्त्व आदि सामायिक प्राप्त करने के बाद उसके परित्याग के जितने समय पश्चात पुनः उसकी प्राप्ति होती है, उसे अंतरकाल कहते हैं। श्रुतसामायिक के प्रतिपत्ता का अंतर काल (सामायिक की पुन:र्प्राप्ति का व्यवधान काल ) जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त तथा उत्कृष्टतः अनंतकाल है। शेष तीन सामायिक के प्रतिपत्ता का अंतरकाल जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त तथा उत्कृष्टतः देशोन अपार्ध पुद्गलपरावर्त्तन जितना है । यह अंतरकाल एक जीव की अपेक्षा से है, नाना जीवों की अपेक्षा से अंतरकाल नहीं होता | 8
यहाँ ज्ञातव्य है कि श्रुतसामायिक का जघन्य और उत्कृष्ट अंतरकाल मिथ्या अक्षरश्रुत की अपेक्षा से है। कोई बेइन्द्रिय आदि जीव श्रुत प्राप्त कर मृत्यु के पश्चात पृथ्वी आदि में उत्पन्न होता है तो वहाँ अन्तर्मुहूर्त्त रहकर पुनः बेइन्द्रिय आदि में उत्पन्न हो श्रुत प्राप्त करता है । उसके अन्तर्मुहूर्त का अंतरकाल होता है। जो बेइन्द्रिय आदि जीव मरकर पृथ्वीकाय, वनस्पतिकाय आदि एकेन्द्रिय योनि में पुन: पुन: उत्पन्न हो तो वहाँ अनंतकाल तक रहता है । तत्पश्चात बेइन्द्रिय आदि में उत्पन्न हो श्रुत प्राप्त करता है, उसकी अपेक्षा अनंतकाल का उत्कृष्ट अंतर कहा गया है।
यह अनंतकाल असंख्यात पुद्गल परावर्त्त जितना होता है। सम्यक् श्रुत सामायिक का अंतरकाल सम्यक्त्व आदि सामायिक जितना ही है 1 69
22. विरह - अविरहकाल
विरहकाल- जिस काल में सामायिक का प्रतिपत्ता ( प्राप्त जीव) कोई