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________________ सम्यक ज्ञान की यात्रा के अनुमोदक श्री थानमलजी बोथरा परिवार मानव जीवन आत्मा से परमात्मा, कंकर से शंकर, बीज से वृक्ष बनने की यात्रा का महत्त्वपूर्ण पड़ाव है। कहते हैं वृक्ष की जड़ें जितनी मजबूत हो उसका बाह्य विस्तार भी उतना ही विराट होता है। भगवान महावीर के दस प्रमुख श्रावक आनन्द, महाशतक आदि अतुल पराक्रमी एवं ऐश्वर्य सम्पन्न थे। धर्म साधना में जितना उनका अंतरंग जुड़ाव था उनका बाह्य वैभव-विलास भी उतना ही बढ़ाचढ़ा था तदुपरान्त भी उनका व्यक्तिगत जीवन सेवा, सादगी एवं त्याग प्रधान देखा जाता है। वे खूब अर्जन करते थे और परोपकार में उसका विसर्जन भी उतना ही शीघ्रता से कर देते थे। वर्तमान जैन समाज में ऐसे ही धर्मनिष्ठ श्रावक हैं थानमलजी बोथरा । थानमलजी का जन्म बीकानेर समीपस्थ उदयरामसर में विक्रम संवत 2009 में नूतन वर्ष के दिन हुआ | आपके पिताश्री चम्पालालजी बोथरा बीकानेर पट्टी के सुप्रतिष्ठित धर्म एवं अर्थ सम्पन्न श्रावक थे। आपकी मातु श्री पाना बाई ने अपने तीनों सुपुत्र पारसमल, थानमल एवं हरकचंद को व्यावहारिक ज्ञान एवं दक्षता के साथ धार्मिक एवं सामाजिक विकास की भी शिक्षा दी। मां पाना बाई की शिक्षा के परिणाम स्वरूप ही मरूधर एवं कलकत्ता में बोथरा परिवार की अनोखी छवि है। आपको गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी परिवार और पैसों से कोई मोह नहीं है। वे भीतर से जल कमलवत जीवन जीते हैं। निःस्पृहता एवं उदारता आपके स्वभाविक गुण हैं। आपके अन्तरंग साधना की ऊँचाई इतनी बढ़ चुकी है कि आप अपने जीवन से न हताश है और न ही आपको मृत्यु का भय है। आपका हृदय अत्यन्त कोमल एवं संवेदनशील है। पुण्यानुबंधी पुण्य से अर्जित लक्ष्मी का सदुपयोग आपने अनगिनत कार्यों में किया है। मानव सेवा, साधर्मिक विकास, शिक्षा, हॉस्पीटल, स्कूल निर्माण, संघ यात्रा आदि अनेक जन हितकारी कार्यों का सम्पादन आपके द्वारा किया गया है। जन्मभूमि उदयरामसर
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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