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________________ 50...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में वह सामायिक है। आवश्यकनियुक्ति में सामायिक नाम पर दमदंत राजर्षि का दृष्टान्त दिया गया है। 2. समयिक- स + मयिक। मया का अर्थ है- दया। अर्थात सर्व जीवों के प्रति दया का भाव रखना समयिक है। इस सामयिक पर मेतार्य मुनि का दृष्टान्त बताया गया है। 3. सम्यग्वाद- सम्यग् - राग-द्वेष रहित, वाद - कथन करना अर्थात राग-द्वेष शून्य होकर यथार्थ कथन सम्यग्वाद है। इस विषय में कालकाचार्य का दृष्टान्त प्रसिद्ध है। 4. समास- सं + आस - सम्यक् प्रकार से स्थित होना अथवा समास के अर्थ हैं- एकत्रित करना, संक्षिप्त करना, संसार सागर से पार होने के लिए आत्म भावों में सुस्थिर होना, पूर्वबद्ध कर्मों का क्षेपण करना समास है। इस सम्बन्ध में चिलातीपुत्र का दृष्टान्त बताया गया है। 5. संक्षेप- द्वादशांगी का सार रूप तत्त्व समझना अथवा चौदह पूर्वो का सार रूप कथन करना संक्षेप है। इस सामायिक पर ऋषि आत्रेय का उदाहरण है। 6. अनवद्य- अनवद्य का अर्थ है- निष्पाप। पाप रहित आचरण करना अनवद्य नामक सामायिक है। शास्त्रों में इस सामायिक के सन्दर्भ में धर्मरूचि अणगार का उदाहरण वर्णित है। ___7. परिज्ञा- परि + ज्ञा अर्थात तत्त्व के स्वरूप को सम्यक् प्रकार से जानना अथवा हेय-उपादेय का सम्यक् बोध करना परिज्ञा नामक सामायिक है। इस विषय पर इलाचीकुमार का दृष्टान्त प्रसिद्ध है। 8. प्रत्याख्यान- गुरु की साक्षी से हेय प्रवृत्ति का त्याग करना प्रत्याख्यान सामायिक है। इस सामायिक के स्पष्टीकरण हेतु तेतलीपुत्र का उदाहरण है।26 उक्त आठों कथानक उत्कृष्ट समता भाव का निर्देशन करते हैं। आवश्यकनियुक्ति, आवश्यकचूर्णि, आवश्यकटीका आदि में इन कथाओं का विस्तृत विवेचन है। सामायिक के प्रकार ___जैन धर्म के प्रवर्तक तीर्थंकर परमात्मा साधना क्षेत्र में प्रवेश करते समय सर्वप्रथम सामायिक चारित्र ग्रहण करते हैं। उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हो जाने पर वे सभी प्राणियों के कल्याण के लिए सर्वप्रथम सामायिक धर्म का ही उपदेश देते
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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