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Ixil...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण अध्याय-3 : प्रायश्चित्त दान की उपयोगिता एवं उसके प्रभाव
47-61 1. शास्त्रकारों के मत में प्रायश्चित्त के लाभ 2. प्रायश्चित्त आवश्यक क्यों? 3. प्रायश्चित्त विधियों के गवेषणात्मक रहस्य • आलोचना गुरुमुख से ही क्यों करें? • आलोचना विधिपूर्वक क्यों ली जाए? • आलोचना एकान्त में क्यों लेनी चाहिए? • वर्तमान में आलोचना के प्रति उपेक्षा क्यों? 4. प्रायश्चित्त दान से संबंधित कुछ शास्त्रीय नियम। अध्याय-4 : आलोचना क्या, क्यों और कब? 62-102
1. जैन आगमों में आलोचना का अर्थ एवं स्वरूप विमर्श 2. आलोचना के एकार्थक शब्द 3. आलोचना के मुख्य भेद 4. आलोचना किन स्थितियों में? 5. आलोचना किसके समक्ष करें? 6. आलोचना के प्रारम्भिक कृत्य 7. साधुसाध्वी की पारस्परिक आलोचना विधि 8. आलोचना करने की आवश्यकता क्यों?.9. आलोचना करने से पूर्व मानसिक भूमिका कैसी हो? 10. आलोचना की सामान्य विधि • आलोचक में अपेक्षित गुण • आलोचना सुनने अथवा प्रायश्चित्त देने योग्य गुरु कैसे हों? • आलोचना किस क्रम से करें? • आलोचना का भाव प्रकाशन किस प्रकार हो? • आलोचना योग्य प्रशस्त द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव 11. आलोचना की प्रायोगिक विधि 12. आलोचना न करने के दुष्परिणाम 13. आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट आलोचना का समय 14. विधिपूर्वक सम्यक आलोचना के सुपरिणाम 15. आलोचना के दोष 16. आलोचना के पश्चात प्रायश्चित्त वहन कैसे करें? 17. आलोचना करने के फायदे और न करने के नुकसान। अध्याय-5 : आलोचना एवं प्रायश्चित्त विधि का ऐतिहासिक अनुशीलन
103-106 अध्याय-6 : जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित
प्रायश्चित्त विधियाँ एवं तुलनात्मक अध्ययन
107-253 1. विधिमार्गप्रपा के अनुसार प्रायश्चित्त विधि