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III... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
सके इसी ध्येय से जीत व्यवहार बद्ध प्रायश्चित्त लिखा गया है। यदि उसमें अनधिकारयुक्त चेष्टा की हो अथवा भ्रान्ति पूर्वक जो भी त्रुटि हुई हो उसके लिए त्रियोग पूर्वक करबद्ध क्षमायाचना करती हूँ ।
अंततः यही कहना चाहूँगी कि जिस प्रकार बादल गर्जन से मोर, कमल पल्लवन से भंवरा, चन्द्र दर्शन से चकोर हर्षित होता है वैसे ही प्रायश्चित्त मार्ग का अनुसरण करके भव्य जीव आत्मानन्द को प्राप्त करते हैं। यह विधि अनुष्ठान, आराधक एवं आराध्य के बीच सेतु का कार्य करते हुए आत्म साधकों को परम विशुद्ध पद प्राप्त करने में सहायक बने, यही शुभाशंसा...