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उपसंहार...263 के बहुत से उपाय बतलाये गये हैं। ऋग्वेद17 में विज्ञ पुरुषों के लिए सात मर्यादाएँ कही गयी हैं उनमें से एक का भी अतिक्रमण करने वाले को पापी की संज्ञा दी गयी है। तैत्तिरीय संहिता18 में ब्राह्मणहत्या को सबसे बड़ा पाप माना है। काठक19 में भ्रूणहत्या को ब्राह्मणहत्या से भी विशेष पाप माना है। वसिष्ठसूत्र में अपराधियों को तीन कोटि में बाँटा गया है
1. एनस्वी, 2. महापातकी, 3. उपपातकी।
साधारण पापी को एनस्वी कहा है तथा उसके लिए विशिष्ट प्रायश्चित्त की व्यवस्था का विधान है। निम्न पाँच प्रकार का पाप कार्य करने वाला महापातक कहा गया है
1. गुरु शय्या को अपवित्र करना, 2. सुरापान करना, 3. भ्रूण की हत्या करना, 4. ब्राह्मण के हिरण्य की चोरी करना, 5. पतित का संसर्ग करना। ___ अग्निहोत्र का त्याग करने वाला, स्व अपराध से गुरु को कुपित करने वाला तथा नास्तिकों के यहाँ आजीविका उपार्जन करने वाला उपपातकी माना गया है।
तैत्तिरीय संहिता, शतपथब्राह्मण, गौतमधर्मसूत्र, मनुस्मृति, वसिष्ठस्मृति आदि ग्रन्थों में पापकर्मों से मुक्त होने के कई साधन भी बतलाये गये हैं।
जैसे जैन परम्परा में आलोचना करने से कुछ दोष समाप्त हो जाते हैं वैसे ही इस परम्परा में माना गया है कि अपराध स्वीकृत व्यक्ति का पाप कम हो जाता है। बोधायनधर्मसूत्र, शंखस्मृति, मनुस्मृति आदि कतिविध ग्रन्थों में हर तरह के पाप से मुक्त होने का उपाय निर्दिष्ट किया गया है। ___जैन परम्परा की भाँति वैदिक परम्परा में भी प्रायश्चित्त सम्बन्धी विपुल साहित्य है। गौतम धर्मसूत्र के 28 अध्यायों में से 10 अध्याय प्रायश्चित्त का वर्णन करते हैं, वसिष्ठ धर्मसूत्र के 30 अध्यायों में 9 अध्याय प्रायश्चित्त सम्बन्धी ही हैं, मनुस्मृति में कुल 222 श्लोक प्रायश्चित्त की चर्चा करते हैं। याज्ञवल्क्यस्मृति के तीसरे अध्याय में 122 श्लोक प्रायश्चित्त पर आधारित हैं, शातातपस्मृति20 में केवल प्रायश्चित्त का ही वर्णन है। इसी तरह अग्निपुराण21 गरुडपुराण22 कूर्मपुराण,23 वराहपुराण,24 ब्रह्माण्डपुराण25 प्रायश्चित्त सम्बन्धित सामग्री से भरे पड़े हैं। इसके सिवाय मिताक्षर, अपरार्क, पाराशर, माघवीय आदि टीकाओं में प्रायश्चित्त पर गहरा चिन्तन किया गया है। इनके अतिरिक्त