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________________ 260...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण अकृतकरण प्रायश्चित्तवाहक भी दो प्रकार के होते हैं-गीतार्थ और अगीतार्थ। इनके दो-दो भेद हैं 1. स्थिर-धृति-संहनन सम्पन्न, स्थिर गीतार्थ जितनी मात्रा में प्रायश्चित्त स्थान का सेवन करता है उतनी मात्रा में उसे परिपूर्ण प्रायश्चित्त दिया जाता है। 2. अस्थिर-धृति-संहननहीन एवं अगीतार्थ मुनि को उसकी सामर्थ्य के आधार पर कम या पूर्ण प्रायश्चित्त देते हैं।14 इस तरह व्यक्तिभेद से भी हीनाधिक प्रायश्चित्त देने का विधान है। 7. सापेक्ष-निरपेक्ष दृष्टि के आधार पर प्रायश्चित्त जैन वाङ्मय अत्यन्त गूढ़ है। यहाँ धर्मोपदेष्टा एवं धर्मवाहक का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध माना गया है उसके परिणामस्वरूप ही धर्म परम्पराएँ अविच्छिन्न रूप से प्रवर्तमान रहती है। जहाँ धर्मोपदेशक श्रोता अपनी पात्रता के अनुसार प्रवचन करता है वहीं धर्म की गंगा अविरल रूप से प्रवहमान होती है इस नियम को प्रायश्चित्त-दान के सम्बन्ध में भी प्रयुक्त किया गया है। व्यवहारभाष्य में कहा गया है कि प्रायश्चित्तार्ह आचार्य अपराधी मुनि को निरपेक्ष व सापेक्ष उभय दृष्टि से प्रायश्चित्त देते हैं। जैसे कोई शिष्य धृति और संहनन से हीन है उनके प्रति आचार्य निरपेक्ष होकर पूरा प्रायश्चित्त नहीं देते, अन्यथा वे द्रव्य या भाव विनष्ट हो सकते हैं। ___ वे प्रायश्चित्त प्राप्त शिष्य के प्रति सापेक्ष होकर, वह अपने सामर्थ्य से एक साथ जितना प्रायश्चित्त वहन कर सकता है, उसकी ही अनुमति देते हैं। इतना ही नहीं वे प्रायश्चित्त के अनेक विकल्प प्रस्तुत कर उसे इच्छानुसार विकल्प ग्रहण करने की बात कहते हैं। ___ आचार्य प्रायश्चित्तवाही मुनि के प्रति सानुकम्प होते हैं, जो जितना कर सकता है, उसे उतना प्रायश्चित्त देते हैं। इस विधि से वह शिष्य को संयम में स्थिर करते हैं और स्वयं जन्म-मरण की परम्परा से मुक्त होते हैं।15 इस प्रकार अपराधी की सामर्थ्यता एवं उसकी अभिरुचि के अनुसार न्यूनाधिक प्रायश्चित्त दिया जाता है। 8. अपवाद मार्ग के आधार पर प्रायश्चित्त उत्सर्गत: अनाचारसेवी मुनि को गुरु द्वारा अपराध के योग्य जितना प्रायश्चित्त दिया जाये उतना यथावत परिपूर्ण करना चाहिए। तदुपरान्त किसी
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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