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उपसंहार...259 पूर्वप्रस्थापित के शेष रहे छह दिनों में ही वहन कर लेता है, इससे तो आपका दुर्बल के प्रति राग और बलिष्ठ के प्रति द्वेष परिलक्षित हो रहा है।
गुरु ने समाधान दिया- हे शिष्य! अरणि घर्षण से उत्पन्न आग बड़े काष्ठ को नहीं जला सकती और शीघ्र बुझ जाती है। किन्तु वही अग्नि काष्ठ या छगण आदि के चूर्ण में डालने से क्रमश: प्रबल हो जाती है। इसी प्रकार धृति-संहनन से दुर्बल व्यक्ति पुनः पुन: छह मासिक तप करता हुआ विषाद को प्राप्त हो सकता है। बड़े काष्ठ की आग बड़े काष्ठ को जलाने में समर्थ होती है। इसी प्रकार धृति-संहनन से सुदृढ़ व्यक्ति ही छह माह का तप पुन: करने में सक्षम होता है। ___एक माह के शिशु को चार माह के शिशु का आहार देने पर वह अजीर्ण रोग से ग्रस्त हो जाता है। चार माह के शिशु को एक माह के शिशु का आहार देने पर वह दुर्बल हो जाता है, किन्तु एक माह के शिशु को अल्प और चार माह के शिशु को प्रचुर आहार देने वाला पक्षपात के दोष से रहित होता है। इसी तथ्य को दुर्बल अपराधी के विषय में घटित करना चाहिए।
इस प्रकार निर्बल एवं सबल के आधार पर भी न्यूनाधिक प्रायश्चित्त दिया जाता है।12 6. पुरुष भेद के आधार पर प्रायश्चित्त
यहाँ पुरुष शब्द से तात्पर्य भिन्न-भिन्न लिंग, वय, चित्तवृत्ति एवं मनःस्थिति वाले व्यक्ति विशेष हैं। इस अपेक्षा से व्यवहारभाष्य में पुरुष के अनेक भेद हैं यथा- गुरु आदि पुरुष; परिणामी-अपरिणामी और अतिपरिणामी पुरुष; ऋद्धिमानप्रव्रजित-ऋद्धिविहीन प्रव्रजित; पुरुष, स्त्री, नुपंसक; बाल-वृद्ध, स्थिर
अस्थिर, कृतयोगी-अकृतयोगी आदि-इन सबके समान अपराध होने पर भी प्रायश्चित्त में भिन्नता रहती है।
स्वभाव की अपेक्षा व्यक्ति दो प्रकार के होते हैं-भद्र और निष्ठुर। इनके तुल्य अपराध होने पर भी इनके प्रायश्चित्त में भेद रहता है।13
तप के आधार पर प्रायश्चित्तवाहक पुरुषों के दो भेद हैं-कृतकरण और अकृतकरण।
कृतकरण प्रायश्चित्त वाहक द्विविध होते हैं1. सापेक्ष-गच्छवासी, जैसे आचार्य, उपाध्याय, साधु। 2. निरपेक्ष-संघयुक्त, जैसे जिनकल्पिक आदि।