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________________ 248...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण 5. प्रतिदेशनीय-यह दण्ड मुख्यतः भोजन दोष के सम्बन्ध में दिया जाता है। इसमें एक योग्य भिक्षु या भिक्षुणी के समक्ष अपने अपराध को स्वीकार कर लेने पर उस पाप कार्य का निराकरण हो जाता है। स्वस्थ भिक्षु-भिक्षुणी को तेल, घी, मधु, मछली, मांस आदि लेने का निषेध किया गया है। एतदर्थ इस दण्ड का मुख्य उद्देश्य है कि भिक्षु-भिक्षुणी को अच्छे भोजन के प्रति ममत्त्व या लालच का भाव नहीं लाना चाहिए। प्रतिदेशना के योग्य 8 अपराध स्वीकारे गये हैं। कुछ दोष निम्न प्रकार हैं1. स्वस्थ होते हुए भी घृत माँगकर खाना। 2. स्वस्थ होते हुए भी दही माँगकर खाना। 3. स्वस्थ होते हुए भी मधु माँगकर खाना। 4. स्वस्थ होते हुए भी दूध माँगकर खाना। 6. सेखिय-यह दण्ड किसी तरह का दुष्कर्म या बुरे विचार करने पर दिया जाता है। छोटे अपराधों के दोषी व्यक्ति को इसी प्रकार का दण्ड दिया जाता है। इस प्रायश्चित्त के योग्य अनेक स्थान हैं। ___7. अधिकरण नियम-यह प्रायश्चित्त लगभग 'दुब्भासिय' नाम से भी उल्लिखित है। बुद्ध, धर्म, संघ या किसी के प्रति कटु या बुरे वचनों का प्रयोग करने पर व्यक्ति प्रस्तुत दण्ड का भागी होता है। इस दण्ड का मुख्य उद्देश्य यह है कि साधकों को अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए। प्रतिदेशनीय, सेखिय और अधिकरण नियम शिक्षाएँ हैं, इनकी विस्तृत जानकारी के लिए विनयपिटक-पातिमोक्ख का अवलोकन करना चाहिए। 8. अनियत- इस प्रायश्चित्त के बारे में स्पष्ट विवरण प्राप्त नहीं हो पाया है। उपर्युक्त वर्णन से परिज्ञात होता है कि बौद्ध परम्परा में प्रायश्चित्त (दण्ड प्रक्रिया) का दायरा अत्यन्त विस्तृत रहा है। शोधार्थियों को चर्चित विषय की अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए अग्रांकित ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिए 1. चुल्लवग्ग, 2. परिवारपालि, 3. परिवारपालि का भाग तृतीय, समन्तपासादिका, 4. पाचित्तिय पालि, 5. भिक्षुणीविनय, 6. पातिमोक्ख (भिक्खु पाचित्तिय) आदि प्रमुख हैं।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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