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________________ 240... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण उपवासों के कारण भूख-प्यास से पीड़ित होकर लोगों के न देखते हुए भोजन कर ले तो प्रतिक्रमण सहित उपवास, यदि ऊपर लिखे दोनों प्रकार के मुनि किसी रोगी मुनि को देखते हुए भोजन कर ले तो पंचकल्लाणक प्रायश्चित्त कहा गया है। • यदि कोई मुनि सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट हुए लोगों के साथ या व्रतों से भ्रष्ट हुए लोगों के साथ विहार करे, उनकी संगति करे तो पंचकल्लाणक, यदि अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्वसाधुओं की निन्दा करें, झूठे दोष लगायें तो प्रतिक्रमण कायोत्सर्ग सहित उपवास प्रायश्चित्त निर्दिष्ट है। • यदि कोई मुनि विद्या, मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र वैद्य आदि अष्टांग निमित्त, ज्योतिष, वशीकरण, गुटिका चूर्ण आदि का उपदेश करे तो प्रतिक्रमण पूर्वक उपवास प्रायश्चित्त आता है। • यदि मुनि सिद्धान्त के अर्थ को जानते हुए भी उपदेश न करे तो आलोचना पूर्वक कायोत्सर्ग तथा श्रोताओं के मन में सन्तोष उत्पन्न न करते हुए क्षोभ पैदा करे तो एक उपवास प्रायश्चित्त आता है। • यदि अप्रमत्त मुनि जीव जन्तुओं से रहित प्रदेश में शोधे बिना सो जाये तो एक कायोत्सर्ग, यदि प्रमत्त मुनि जीव जन्तु रहित स्थान पर बिना शोधे सो जाये तो एक उपवास, यदि प्रमत्त मुनि जीव जन्तु सहित स्थान पर संस्तर बिना शोधे सो जाये तो कल्लाणक प्रायश्चित्त आता है। • यदि किसी मुनि से कमण्डलु आदि उपकरण नष्ट हो गये हों अथवा टूट-फूट गये हों तो जितने अंगुल में टूटे-फूटे हों उतने उपवास करना चाहिए। आर्यिका सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त सह समणाणं भणियं, समणीणं तहय होय मलहरणं । वज्जियतियाल जोगं, दिणपडिमं छेदमालं च ।। पूर्व में मुनियों के लिए जो प्रायश्चित्त कहा गया है वैसा ही आर्यिकाओं का प्रायश्चित्त समझना चाहिए। विशेष इतना है कि आर्यिकाओं को त्रिकाल योग एवं सूर्य प्रतिमा योग धारण नहीं करना चाहिए। बाकी सब प्रायश्चित्त मुनियों के समान है। • यदि आर्यिका रजस्वला हो जाये तो उस दिन से चौथे दिन तक अपने संघ से अलग होकर किसी एकान्त स्थान में रहना चाहिए। उन दिनों आचाम्ल
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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