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________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...235 पारणा करें। परमति पाखण्डी को मारने पर छ: महीने और उनके भक्त को मारने पर तीन महीने तक तेला-तेला पारणा करें। • इसी प्रकार ब्राह्मण को मारने पर आदि-अन्त में तेला करें और छ: महीने तक उपवास और एकासन करें। क्षत्रिय को मारने पर आदि-अन्त में तेला और तीन महीने तक एकान्तर उपवास करें। वैश्य को मारने पर डेढ़ महीने तक एकान्तर उपवास और आदि-अन्त में तेला करें। किन्हीं आचार्यों के मतानुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र को मारने का प्रायश्चित्त आठ महीने, चार महीने, दो महीने और एक महीने तक एकान्तर उपवास और आदि- अन्त में तेला बतलाया है। इसी प्रकार घास-फूस खाने वाले पशु के मर जाने पर चौदह उपवास, मांसभक्षी पशु के मरने पर ग्यारह उपवास तथा पक्षी, सर्प, जलचर, छिपकली आदि जीवों के मरने पर नौ उपवास का प्रायश्चित्त बताया है। • यदि एक बार प्रत्यक्ष रूप से असत्य भाषण किया जाए तो उसका प्रायश्चित्त एक कायोत्सर्ग है। एक बार परोक्ष रूप से असत्य कहने का प्रायश्चित्त दो उपवास है। एक बार त्रिकोटि से असत्य कहने का तीन उपवास, अनेक बार प्रत्यक्ष असत्य भाषण करने का पंचकल्लाण दोष है। अनेक बार परोक्ष असत्य भाषण का पंचकल्लाण है। अनेक बार प्रत्यक्ष परोक्ष मिश्र असत्य कहने का पंचकल्लाण है। अनेक बार त्रिकोटि से असत्य कहने का पंचकल्लाण है। • यदि मोहवश एक बार परोक्ष चोरी करे तो एक कायोत्सर्ग का प्रायश्चित्त है। एक बार प्रत्यक्ष चोरी करने पर एक उपवास है। एक बार परोक्ष में चोरी करने पर दो उपवास है। एक बार त्रिकोटि से चोरी करने पर तीन उपवास, अनेक बार परोक्ष में चोरी करने पर पंचकल्लाण, अनेक बार प्रत्यक्ष चोरी करने पर पंचकल्लाण तथा अनेक बार त्रिकोटि से चोरी करने पर पंचकल्लाण का प्रायश्चित्त आता है। • यदि मुनि रात्रि में निद्रा ले और स्वप्न में वीर्यपात हो जाये तो उपवास युक्त प्रतिक्रमण, यदि मुनि नियम पूर्वक रात्रि में निद्रा ले और स्वप्न में वीर्यपात हो जाये तो उपवास युक्त प्रतिक्रमण, यदि पिछली रात्रि में सामायिक से पूर्व वीर्यपात हो जाये तो उपवास युक्त प्रतिक्रमण, यदि शाम की सामायिक के बाद
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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