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234... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
जाये तो एक उपवास, यदि तीन चतुरिन्द्रिय जीवों का घात हो जाय तो एक उपवास, इसी प्रकार छत्तीस एकेन्द्रिय जीवों का घात हो जाये तो प्रतिक्रमण सहित तीन उपवास, इसी प्रकार तीन गुणा जीवों के घात का तीन गुणा प्रायश्चित्त आता है। यदि मुनि से अज्ञानतावश एक सौ अस्सी एकेन्द्रिय, नब्बे बेइन्द्रिय, साठ तेइन्द्रिय, पैंतालीस चतुरिन्द्रिय जीवों का वध हो जाये तो प्रत्येक के लिए एक-एक पंचकल्लाण का उत्कृष्ट प्रायश्चित्त आता है।
• मूलगुण के चार भेद हैं- स्थिर मूलगुणचारित्रधारी, अस्थिर मूलगुणचारित्राधारी, प्रयत्न चारित्र मूलगुणधारी, अप्रयत्न चारित्र मूलगुणधारी । ये चार भेद उत्तरगुणधारियों के भी होते हैं। इस प्रकार मुनियों के आठ भेद हो जाते हैं। इन सबके प्रायश्चित्त अलग-अलग हैं। जैसे- प्रथम मुनि को तीन उपवास, दूसरे को प्रतिक्रमण पूर्वक एक पंच कल्लाण, तीसरे को प्रतिक्रमण पूर्वक तीन उपवास और चौथे को प्रतिक्रमण पूर्वक एक लघु कल्लाण है। इसी प्रकार अनुक्रम से उपर्युक्त प्रायश्चित्त उत्तरगुण वालों के भी होते हैं। यह एक पंचेन्द्रिय असंज्ञी जीव के वध का प्रायश्चित्त है । यदि पूर्व निर्दिष्ट आठ प्रकार के मुनियों द्वारा नौ प्राण वाले असंज्ञी का अनेक बार वध हो जाये तो क्रमशः तीन उपवास, एक कल्लाण, दो लघु कल्लाण, तीन पंचकल्लाण का प्रायश्चित्त कहा गया है।
• उत्तरगुण को धारण करने वाला साधु प्रमादवश एकेन्द्रियादि से चतुरिन्द्रिय पर्यन्त जीवों के गमनागमन को रोके तो एक कायोत्सर्ग करें। यदि असंज्ञी पंचेन्द्रिय के गमनागमन को रोके तो एक उपवास करें। यदि मूलगुणधारी साधु प्रमाद से एकेन्द्रिय आदि चतुरिन्द्रिय पर्यन्त जीवों के गमनागमन को रोके तो एक कायोत्सर्ग करें, असंज्ञी पंचेन्द्रिय का गमनागमन रोके तो उपवास करें। यदि प्रयत्नाचार एवं अप्रयत्नाचार मुनियों के द्वारा एकेन्द्रिय या असंज्ञी पंचेन्द्रिय - जीवों का गमनागमन रोका जाये तो एक कायोत्सर्ग और संज्ञी पंचेन्द्रिय का गमनागमन रोकें तो एक उपवास करें।
• यदि किसी मुनि को मारने के भाव उत्पन्न हो जायें तो एक वर्ष तक निरन्तर तेला-तेला पारणा करें तथा श्रावक की हिंसा के भाव उत्पन्न होने पर छह महीने तक तेला-तेला पारणा करें। बालहत्या, स्त्रीहत्या, गौ हत्या हो जाने पर अनुक्रम से तीन महीना, डेढ़ महीना और साढ़े बाईस दिन तक तेला-तेला