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228... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
प्रायश्चित्त-दान से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थ हैं और आज भी यह विधि अक्षुण्ण रूप से प्रवर्तित है। हमें 'प्रायश्चित्त संग्रह' नाम की एक कृति उपलब्ध हुई है जिसमें भिन्न-भिन्न रचयिताओं की चतुर्विध प्रायश्चित्त विधियाँ संकलित हैं।
प्रथम रचना का नाम 'छेदपिण्ड' है। वह इन्द्रनन्दि योगीन्द्र विरचित (लगभग वि.सं. 1376 की ) प्राकृत भाषा में है। इसकी संस्कृत छाया पं. पन्नालालजी द्वारा की गई है। इस ग्रन्थ में प्रमुख रूप से साधु के छह व्रतों में लगने वाले दोष, पाँच समिति में लगने वाले दोष, पाँच इन्द्रियों से होने वाले दोष, लोच में लगने वाले दोष, आवश्यक क्रियाओं के दोष, अचेलक - अस्नानअदंतधोवण-अगृहशय्या-एकासन आदि मूलगुण में लगने वाले दोषों एवं उत्तरगुण सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त कहे गये हैं। इसी क्रम में प्रायश्चित्त के दस प्रकार, गृहस्थधर्मी के बारह व्रत एवं पंचाचार आदि में संभावित दोषों के प्रायश्चित्त बताये गये हैं।
दूसरी रचना 'छेदशास्त्र' के नाम से है। इसका दूसरा नाम छेदनवति भी है क्योंकि इसमें नवति (90) गाथाएँ हैं। इस ग्रन्थ के मूलकर्त्ता एवं वृत्तिकर्त्ता का नाम अज्ञात है। उसकी संस्कृत छाया पं. पन्नालालजी द्वारा लिखी गई है। इस ग्रन्थ में भी पूर्ववत जैन मुनि के मूलगुणों एवं उत्तरगुणों सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त का निरूपण है। इसी के साथ गृहस्थवर्ग (श्रावक-श्राविका ) से सम्बन्धित प्रायश्चित्त अधिकार के प्रारम्भ में कहा गया है कि जो प्रायश्चित्त मुनियों के लिए हैं वह श्रावकों के निमित्त भी होता है किन्तु उत्तम श्रावकों को मुनि की अपेक्षा आधा प्रायश्चित्त दिया जाता है, ब्रह्मचारी को उससे भी आधा प्रायश्चित्त दिया जाता है, मध्यम श्रावकों को उससे भी आधा प्रायश्चित्त दिया जाता है तथा जघन्य श्रावकों को उससे भी आधा प्रायश्चित्त दिया जाता है।
वहाँ किन्हीं आचार्य के मतानुसार यह उल्लेख भी किया गया है कि ऋषियों के प्रायश्चित्त का उत्तम श्रावक को दूसरा भाग, ब्रह्मचारी को तीसरा भाग एवं सामान्य श्रावक को चतुर्थ भाग जितना प्रायश्चित्त देना चाहिए। इस ग्रन्थ में गृहस्थधर्मी के बारहव्रतों आदि से सन्दर्भित दोषों की चर्चा न करके जिन पूजा, पाँच उदुम्बर, मृतसूतक आदि किंच दोषों के प्रायश्चित्त कहे गये हैं।
तीसरी रचना का नाम 'प्रायश्चित्त चूलिका' है। इसके कर्त्ता का नाम गुरुदास एवं वृत्ति रचयिता का नाम नन्दिगुरु बतलाया गया है, यद्यपि नामों में