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200...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
• गुरु को वन्दन एवं योगोद्वहन सम्बन्धी कायोत्सर्ग न करने पर भी उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• अनागाढ़ योगों का देशत: भंग होने पर आयंबिल और सर्वभंग होने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• आगाढ़ योगों का देशत: भंग होने पर उपवास और सर्वभंग होने पर तेले का प्रायश्चित्त आता है।
• गुणीजनों की निन्दा करने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है।
• अनागाढ़ सूत्रों के योग में उद्देशक, अध्ययन, श्रुतस्कन्ध एवं अंगसूत्र की वाचना हेतु की जाने वाली विधि का भंग होने पर अथवा उसमें अतिचार लगने पर क्रमश: एकासन, पुरिमड्ढ, एकासन एवं उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• आगाढ़ सूत्रों के योग में उद्देश, अध्ययन, श्रुतस्कन्ध एवं अंग की वाचना विधि का भंग होने पर क्रमश: पुरिमड्ढ, एकासन, आयंबिल एवं बेले का प्रायश्चित्त आता है।
• अयोग्य व्यक्ति, मूर्ख या वक्रजड़ को सूत्र की वाचना देने पर आयंबिल एवं उपवास का प्रायश्चित्त आता है। 2. दर्शनाचार में संभावित दोषों के प्रायश्चित्त
अथ दर्शनातिचारे निःशङ्कितादिलङ्घने यथा-'शङ्काद्येष्वतिचारेषु चतुःपादतपो भवेत्। मिथ्योपबृंहणाज्ज्ञेयं प्रायश्चित्तं कमादिदम्।।7।। विलम्बः सर्वसाधूनां साध्वीनां च सुभोजनम्। सजलं श्रावकाणां चाश्राविकाणां गुरुस्तथा।।8।। साध्वादीनां चतुर्णां च मिथ्याशास्त्राभिभाषणात्। विरसश्च विलम्बश्च प्राणाधारो द्विपादकः।।।। यतेस्तु दर्शनाचारे परिवारादिपालने। व्रतसाधर्मिकार्थं च प्रायश्चित्तं न किंचन।।10।।'
(आचारदिनकर, भा. 2, पृ. 244) • आचार्य वर्धमानसूरि के अनुसार शंका, कांक्षा, विचिकित्सा आदि दर्शनाचार के अतिचारों का सेवन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• मिथ्या प्रशंसा करने पर क्रमशः साधु को पुरिमड्ढ, साध्वी को एकासना, श्रावक को आयंबिल एवं श्राविका को उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ के द्वारा मिथ्याशास्त्र, का भाषण करने पर साधु को नीवि, साध्वी को पुरिमड्ढ, श्रावक को एकासना