SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 190...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण • सचित्त, द्रव्य, वस्त्र, शय्या आदि चौदह प्रकार के नियमों का भंग करने पर प्रत्येक नियम के लिए पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। . सचित्तवस्तु त्याग का नियम होने पर भी प्रत्येक वनस्पतिकाय रूप आमफल आदि का भक्षण करने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। • चुगली, परनिन्दा, मिथ्यादोषारोपण एवं राग करने पर प्रत्येक के लिए आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। • चार प्रकार के अनर्थदण्ड का सेवन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • नपुंसक आदि का विवाह करने पर तथा अन्य विवाह करवाने पर प्रत्येक विवाह के लिए क्रमश: आयंबिल एवं पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। ___ मतान्तर से दसों दिशाओं में आने-जाने के परिमाणरूप दिग्परिमाणव्रत का भंग होने पर तथा इसी प्रकार अज्ञानतावश एवं अभिमान पूर्वक शेष गुणव्रतों का भंग करने पर प्रत्येक व्रत के लिए पाँच उपवास का दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। 4. चार शिक्षाव्रत सम्बन्धित दोषों के प्रायश्चित्त श्रावक जीतकल्प के अनुसार देशावकाशिके भग्ने पौषधे भग्न एव च। अतिधीनामनर्चायां क्रमात्तप उदीर्यते।।24।। आनाहारश्च कामनं कामनं मुक्त एव च। प्रायश्चित्तमिदं प्रोक्तं व्रतेषु द्वादशस्वपि।।25।। अयमेव श्राविकाणां प्रायश्चित्तविधिः स्मृतः। विशेषः कोपि तासां तु पुनरेव प्रकीर्त्यते।।26।। सामायिकव्रतस्थायाः स्थितायाः पौषधेऽथवा। नृसंघट्टे मन्त्रजापः पञ्चविंशतिसंख्यकः।।27।। तत्रापि वालस्वीकारे कार्यमोदयमञ्जसा। पञ्चाणुव्रतभङ्गे तु तासां शोधनमन्तिमम्।।28।। प्रत्याख्यानवियुक्तौ तु चतुःपादोप्यकारणात्। प्रत्याख्याने च चरमे कृते प्राहुः सुभोजनम्।।29।। जीवोदकस्य संशोषे षट्पदीनां च घातने। मठचैत्यनिवासे च तासांशोधनमन्तिमम्।।30।। श्राविका यस्य तपसः प्रत्याख्यानं भनक्ति च। प्रत्याख्यानं तदेव स्यात्करणीयं तया पुनः।।31।। (आचारदिनकर भा. 2, पृ. 249) • सामायिकव्रत के अतिचारों का सेवन करने पर, देशावगासिकव्रत एवं पौषधव्रत का भंग होने पर तथा अतिथिसंविभागवत का सम्यक रूप से
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy