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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...189 • कर्मादान अर्थात श्रावक के लिए सर्वथा निषिद्ध व्यापार, व्यवसाय करने पर बेले तप का प्रायश्चित्त आता है।
. आठवें अनर्थदण्डविरमणव्रत का अतिक्रमण होने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
व्यवहार जीतकल्प के अनुसार
दिग्व्रतभ्रंशने चैव भोगव्रतविखण्डने। रात्रिभोजननिर्माणे निःपापः पापमर्षणः।।61।। नवनीतसुरामांसमधुभक्षणतो मदात्। प्रत्येकमन्तिमाच्छुद्धिर्नवनीते च भेषजे।।62।। क्षौद्रं च भुक्त्वा परममनाभोगात्सुरालये। अनन्तकायं भुक्त्वा च तथोदुम्बरपञ्चकम्।।63।। भुक्त्वा निःपापतः शुद्धिः प्रत्येकवनभोगतः। शुद्धिः सजलतो ज्ञेया प्रोक्तमेवं सुसाधुभिः।।64।। सचित्तद्रव्यवस्त्रान्नशय्यादीनां चतुर्दश। नियमाभङ्गतस्तेषां प्रत्येकमरसं लघु।।5।। सचित्तवर्जकस्यापि प्रत्येकाम्रादिभक्षणे। सजलं पञ्च दशसु कर्मादानेषु सर्वथा।।66।। प्रत्येकं पुण्यमादिष्टं पैशुन्ये परनिन्दने। अभ्याख्याने तथा रागे प्रत्येकं सजलं विदुः।।67।। चतुर्विधेऽनर्थदण्डे गुरुर्गुरुभिरावृतः। षण्ढादीनां विवाहे च तथैवान्यविवाहने।।68।। प्रत्येकमेतयोः शीतं पूर्वार्धमपरे पुनः। ___ मतान्तर- दशदिक्षु दिग्विरतिभञ्जनेऽप्येवमेव हि। जानन्नपि हि सर्वं यो व्रतं दानिकृन्तति।।89।। तस्यैव शुद्धये प्रोक्ताः प्रत्येकं द्वादशान्तिमाः। प्रायश्चित्तविधिश्चायं श्राद्धानामुपदर्शितः।।90।।
(आचारदिनकर, भा. पृ. 256-257) . दिग्व्रत एवं भोगोपभोगव्रत का खण्डन होने पर तथा रात्रि में भोजन बनाने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। . . अहंकारवश मक्खन, मदिरा, मांस एवं मधु का भक्षण करने पर प्रत्येक के लिए दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
. औषधि के रूप में मक्खन एवं शहद का सेवन करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है।
• मदिरालय में मदिरा का सेवन करने पर, अनंतकाय का भक्षण करने पर तथा पाँच उदुम्बर फलों का भक्षण करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• प्रत्येक वनस्पतिकाय का सचित्त रूप में भक्षण करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।