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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...179 6. अहंकार से वन्दन करने पर, 7. चोर की तरह छिपते हुए वन्दन करने पर, 8. अवज्ञा करते हुए वन्दन करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
9. अनाहत-अनादर से वन्दन करने पर, 10. अपविद्ध- भाडेती की तरह शीघ्र वन्दन करने पर, 11. परिपिण्डित- एक बार की वन्दना में सर्व साधुओं को सम्मिलित वन्दन करने पर, 12. टोलगति-टिड्डी की तरह कूदते हुए वन्दन करने पर, 13. अंकुश-रजोहरण को अंकुशवत रखते हुए वन्दन करने पर, 14. कच्छ भरिंगित-केचुंए की तरह अंगोपांगों को घसीटते हुए वन्दन करने पर, 15. मत्स्योवृत्त-मछली की तरह उछलते हुए वन्दन करने पर, 16. मनःप्रदुष्टआचार्य आदि के दोषों का मन में विचार करते हुए वन्दन करने पर, 17. वेदिकाबद्ध- हाथों को बाहर रखते हुए वन्दन करने पर, 18. भजन्त- यह गुरु मेरा ध्यान रखते हैं और आगे भी मेरा ध्यान रखेंगे, इस अभिप्राय से वन्दन करने पर, 19. भय-संघ द्वारा बहिष्कृत कर देने के भय से वन्दन करने पर, 20. 'आचार्य मेरे मित्र हैं अथवा होंगे' ऐसा जानते हुए वन्दन करने पर, 21. कारण- ज्ञान, दर्शन और चारित्र के लाभों को छोड़कर शेष वस्त्र, पात्र आदि अन्य प्रयोजन से वन्दन करने पर, 22. शठ-विश्वास पैदा करने हेतु कपट भाव से वन्दन करने पर, 23. विपरिकुंचित-विकथा करते हुए वन्दन करने पर 24. दुष्टादुष्ट- कोई देख रहा हो तब वन्दन करने पर, अन्यथा नहीं करने पर, 25. श्रृंग-पशुओं के सींग की भाँति ललाट के दो पडखे पूर्वक वन्दन करने पर, 26. कर-एक प्रकार से करदण्ड समझकर वन्दन करने पर, 27. तन्मोचन-इससे कब छुटकारा पाऊँगा? यह सोचते हुए वन्दन करने पर, 28. आश्लिष्टानश्लिष्ट-रजोहरण और मस्तक पर हाथ का स्पर्श करते हुए अथवा नहीं करते हुए वन्दन करने पर, 29. न्यून-गुरुवन्दन सूत्रों के अक्षरों को न्यूनाधिक रूप से बोलते हुए वन्दन करने पर, 30. उत्तरचूलिका- वन्दन करने के पश्चात् ‘मत्थएण वंदामि' इस अन्तिम पद को ऊँचे स्वर में बोलने पर, 31. मूक-गुरुवन्दन पाठ को मन में बोलते हुए वन्दन करने पर, 32. ढड्डरऊँचे स्वर में बोलते हुए वन्दन करने पर, 33. चूडलिअ-रजोहरण को पलीते की तरह घुमाते हुए वन्दन करने पर इत्यादि दोषों में पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।