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146... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
सोलह उद्गम दोषों के प्रायश्चित्त
1-2. आधाकर्म और औद्देशिक- आचार्य जिनप्रभसूरि के उल्लेखानुसार एवं जीतसूत्र के मतानुसार आधाकर्म दोष सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर चतुः गुरु का प्रायश्चित्त आता है। औद्देशिक दोष के दोनों प्रकारों में ओघ औद्देशिक सम्बन्धी दोष लगने पर मासलघु का प्रायश्चित्त आता है || 4 ||
विभाग औद्देशिक तीन प्रकार का कहा गया है - 1. उद्दिष्ट 2. कृत और 3. कर्म।
इन प्रत्येक के उद्देश- समुद्देश - आदेश और समादेश ये चार - चार भेद होने से बारह प्रकार होते हैं || 5 ||
उद्दिष्ट विभाग के उद्देश- समुद्देश- आदेश- समादेश इन चारों भेद सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर मासलघु, कृत विभाग औद्देशिक के चार प्रकार सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर मासगुरु तथा कर्म विभाग औद्देशिक का प्रथम भेद उद्देश सम्बन्धी दोष लगने पर चतुः लघु का प्रायश्चित्त आता है ||6||
कर्म विभाग औद्देशिक के शेष तीन भेद समुद्देश आदि सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर चतुःगुरु का प्रायश्चित्त आता है, ऐसा तीर्थंकर पुरुषों ने कहा 11711
3. पूतिकर्म - तीसरा पूतिकर्म दोष उपकरण और भक्तपान सम्बन्धी दो प्रकार का होता है।
उपकरण पूतिकर्म सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर मासलघु तथा भक्तपान पूतिकर्म सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर मासगुरु का प्रायश्चित्त आता है।।7-8।।
4. मिश्रजात - चौथा मिश्रजात दोष यावदर्थिक, साधु और पाखण्डी के भेद से तीन प्रकार का है।
यावदर्थिक मिश्रजात सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर चतुः लघु तथा पाखण्डी एवं स्व-पर साधु मिश्रजात सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर चतुः गुरु का प्रायश्चित्त आता है । 18 - 91
5. स्थापना - पांचवाँ स्थापना दोष चिर और अचिर के भेद से दो प्रकार का निर्दिष्ट है। चिर स्थापना सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर मास लघु तथा अचिर स्थापना सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर पणग का प्रायश्चित्त आता है। 19-10।।