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138...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण निमित्ते य उ.। कम्मोद्देसियआइमभेए मीसजायपढमभेदे धाईपिण्डे दूईपिण्डे अईयनिमित्ते आजीवणापिण्डे वणीमगपिण्डे बादरचिगिच्छाए कोहमाणपिण्डेसु संबंधिसंथवकरणे विज्जामन्तचुण्णजोगपिण्डेसु पयासकरणे दुविहे दव्वकीए आयभावकीए लोइय-पामिच्चपरियट्टिए निपच्चवायपरग्गामाभिहडे पिहिओन्भिन्ने कवाडोन्भिन्ने उक्किट्ठमालोहडे अच्छिज्जाणिसिढेसु पुरोकम्म-पच्छाकम्मेसु गरहियमक्खिए संसत्तमक्खिए पत्तेयअणंतरनिक्खित्तपिहियसाहरिय-उम्मीसापरिणयछड्डिएसु बालवुड्डाइदायगदुढे पमाणोल्लंघणे सधूमे अकारणभोयणे य आं.। अन्भवपूरगअंतिमभेयदुगे कडभेयचउक्के भत्तपाणपूईए मायापिंडे अणंतकायपरंपरनिक्खित्तपिहियाइसु मीस-अणंतअणंतरनिक्खित्ताइसु य ए.। ओहोदेसिए उद्दिट्ठभेयचउक्के उवगरणपूईए चिरट्ठविए पायडकरणे लोगोत्तर परियट्टियपामिच्चे परभावकीए सग्गामाभिहडे दद्दरोन्भिन्ने जहन्नमालोहडे पढमब्भवपूरगे सुहुमचिगिच्छाए गुणसंथवकरणे मीसकद्दमेण लवणसेडियाइणा य मक्खिए पिट्ठाइमक्खिए कत्तगलोढगविरोलगपिंजगदायगेसु पत्तेयपरंपर-दुवियाइसु मीसाणंतरट्ठवियाइसु य पु.। इत्तरट्ठविए सुहुमपाहुडियाए ससिणिद्धे ससरक्खमक्खिए मीसपरंपरठवियाइसु पत्तेयाणंतबीयट्ठवियाइसु य नि.। मूलकम्मे मूलं।
(विधिमार्गप्रपा, पृ. 81-82) जैन आगमों के अनुसार भिक्षा प्राप्ति के निमित्त कुल 42 दोषों और आहार करते वक्त 5 दोषों के लगने की संभावना रहती है। उन 47 दोषों का सामान्य स्वरूप इस प्रकार है• निम्न 16 दोष गृहस्थ के द्वारा संभावित होते हैं
आहाकम्मुद्देसिय, पूइकम्मे य मीसजाए य। ठवणा पाहुडियाए, पाओयर-कीअ-पामिच्चे ।। परियट्टिए अभिहडे, उन्भिण्णे मालोहडे ति य । अच्छिज्जे अणिसढे, अज्झोयरए य सोलसमे ।।
(पिण्डनियुक्ति 92/93) 1. आधाकर्म- साधु को आधार मानकर बनाया गया भोजन दान करना
आधाकर्म दोष है।