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________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...137 • मृषावाद, अदत्तादान और परिग्रह का सेवन करने पर यथासंख्या जघन्य से एकासना, मध्यम से आयंबिल, उत्कृष्ट से उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • मैथुन सम्बन्धी चिन्तन करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। • मैथुन विषयक परिणाम उत्पन्न होने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • मैथुन सेवन के प्रति राग करने पर छट्ट का प्रायश्चित्त आता है। • नपुंसक अथवा पुरुष संबंधी मैथुन का वचन से अपलाप करने पर मूल प्रायश्चित्त आता है। • श्रमण-नारी या श्रमण-श्रमणी के द्वारा परस्पर मैथुन क्रीड़ा करने पर पारांचिक प्रायश्चित्त आता है। • मुनि के द्वारा स्त्री का गर्भाधान या गर्भपात जैसी क्रियाएँ करवाने पर मूल प्रायश्चित्त आता है। • श्रमण-नारी या श्रमण-श्रमणी द्वारा परस्पर में कामवासना से युक्त होकर मैथुन सेवन करने पर मूल प्रायश्चित्त आता है। • मुनि द्वारा हस्तकर्म (हाथों के स्पर्श द्वारा विषयजन्य प्रवृत्ति) करने पर अट्ठम का प्रायश्चित्त आता है। • लेपकारक द्रव्य से उपलिप्त पात्र आदि का उपभोग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • सूंठ आदि शुष्क वस्तुओं का संग्रह कर उसका भोग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • घृत-गुड़ आदि आर्द्र वस्तुओं का संग्रह कर उसका परिभोग करने पर छट्ठ का प्रायश्चित्त आता है। . . दिवसगृहीत आहार को दिन में भोगकर, अवशिष्ट आहार का रात्रि में सेवन करने पर अट्ठम का प्रायश्चित्त आता है। उत्तरगुण (आहार चर्या) सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त आहाकम्मिए कम्मुद्देसियचरिमभेयतिगे मिस्सजायअंतिमभेयदुगे बायरपाहुडियाए सपच्चवायपरगामाभिहडे लोभपिण्डे अणंतकायअणंतरनिक्खित्त-पिहिय-साहरिय-उम्मीसापरिणयछड्डिएसु गलंतकुट्ठपाउयारूढदायगेसु गुरुअचित्तपिहिए संजोयणा-इंगालेसु वट्टमाणाणागय
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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